30 वर्ग फुट की दुकान से लंदन तक: कैसे हट्टी कापी ने दक्षिण भारतीय फ़िल्टर कॉफ़ी को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया

30 वर्ग फुट की दुकान से लंदन तक: कैसे हट्टी कापी ने दक्षिण भारतीय फ़िल्टर कॉफ़ी को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया

30 वर्ग फुट की दुकान से लंदन तक: कैसे हट्टी कापी ने दक्षिण भारतीय फ़िल्टर कॉफ़ी को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया
अपनी मामूली शुरुआत के साथ लगातार आगे बढ़ते हुए आज हट्टी कापी ने भारत और विदेशों में 110 आउटलेट्स का नेटवर्क विकसित कर लिया है, जिसमें लंदन में इसका पहला अंतरराष्ट्रीय स्टोर भी शामिल है।

यह समय व्यापक उपभोक्ता बदलाव के अनुरूप है, भारत की घरेलू कॉफी खपत 2023 में लगभग 91,000 टन तक पहुंच जाएगी और कैफे बाजार जिसका मूल्य 2024 में 380.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर होगा, दोहरे अंकों की दर से बढ़ रहा है।

हट्टी कापी के फाउंडर डायरेक्टर और सीईओ यू.एस. महेंद्र बताते हैं कि "जब हमने 2009 में बेंगलुरु के गांधी बाजार में शुरुआत की थी, तो यह 30 वर्ग फुट की एक दुकान थी जो प्रतिदिन 3,000 कप कॉफी परोसती थी। उस छोटे से स्टोर ने हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा।"

सोलह साल बाद आज दक्षिण भारतीय फिल्टर कॉफी दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गई है और फिल्टर कॉफी को मुख्यधारा के कैफे बाजार में लाने वाले सबसे बड़े ब्रांडों में से एक बन गई है। महेंद्र ने बताया "हट्टी कॉफी के लिए इससे बेहतर समय और क्या हो सकता था।"

महेंद्र ने अपनी कॉफी की क्वॉलिटी और फेम के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया: यह कैसे शुरू हुआ
महेंद्र अपनी कॉफी की पॉपुलैरिटी का श्रेय अपनी जड़ों को देते हैं, उन्होंने कहा "हम कर्नाटक के कॉफी उत्पादक क्षेत्र हासन से आते हैं और कॉफी हमारे डीएनए में है।" वे और उनके को-फाउंडर एमएल गौड़ाजी पश्चिमी घाट के बागान क्षेत्रों, जैसे कुर्ग, चिकमंगलूर और हासन, से गहरे जुड़े परिवारों से आते हैं जो भारत की लगभग 90 प्रतिशत कॉफी पैदा करते हैं।

कॉफी के व्यापार में कई साल बिताने के बाद महेंद्र को अपने बिजनेस ग्रोथ को लेकर कुछ नया और फेमस बनाने की जरूरत महसूस हुई और उनके लिए कैफे कॉफी डे के दूरदर्शी, दिवंगत वीजी सिद्धार्थ ही प्रेरणा बने। उन्होंने आगे कहा "उन्होंने भारतीय कॉफी उद्योग में बदलाव लाया, लेकिन कैफे कॉफी डे का ध्यान कॉफी के पश्चिमी संस्करण पर था। मैं फिल्टर कॉफी के साथ बड़ा हुआ हूं इसलिए हमने सोचा कि हम कुछ ऐसा पेश करें जो किफायती और हमारे स्वाद के अनुकूल हो।" इसके साथ ही प्रामाणिक दूध आधारित दक्षिण भारतीय फिल्टर कॉफी को स्केलेबल बनाने के निर्णय ने ब्रांड को आकार दिया।

हट्टी कापी की विकास कहानी
अगला महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब बेंगलुरु हवाई अड्डे ने उन्हें एक जगह की पेशकश की, यह स्टोर हमारे लिए एक मील का पत्थर बन गया। वहीं आज हट्टी कापी अकेले बेंगलुरु हवाई अड्डे पर प्रतिदिन 2,000-2,500 कप कॉफी बनाती है।

वित्त वर्ष 23 में केम्पेगौड़ा हवाई अड्डे पर 31.9 मिलियन यात्रियों का आंकड़ा पार करने के साथ इस रणनीतिक स्थान ने ब्रांड की दृश्यता को कई गुना बढ़ा दिया। हवाई अड्डे के मॉडल को जल्द ही चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई में भी दोहराया गया। हट्टी कापी ने जानबूझकर एक मल्टी-टचपॉइंट मॉडल अपनाया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि उपभोक्ता हवाई अड्डों, आईटी पार्कों, मॉल, अस्पतालों, होटलों और कॉर्पोरेट आयोजनों में दैनिक दिनचर्या में ब्रांड से रूबरू हों। जहां ब्रांड अपनी पहचान के रूप में फिल्टर कॉफी के प्रति वफादार है, वहीं हट्टी कापी ने अपने कैफे प्रारूप का विस्तार किया है।

इस संदर्भ में उन्होंने बताया "हमने वैश्विक प्रारूपों से सीखा है जहां स्टारबक्स एक अमेरिकनो कॉफी बेचता है, वहीं हमारा ध्यान सर्वश्रेष्ठ भारतीय कॉफी अनुभव प्रदान करने पर है। हम हाई क्वॉलिटी वाली मशीनों और तकनीकों का उपयोग करते हैं, लेकिन हमारे मेनू का मूल तत्व असली भारतीय फिल्टर कॉफी है।"

इसके अलावा बढ़ती मांग के साथ ब्रांड के मॉडल ने अपने फूड मेनू में भी बदलाव किया है, जिसमें मिनी इडली, मद्दुर वड़ा, चावल की रोटियां, उपमा, क्रोइसैन्ट, वड़ा पाव और बहुत कुछ शामिल है। यह स्थिति महानगरीय शहरों में भी दिखाई देती है जहां उपभोक्ता कैफे संस्कृति के साथ-साथ स्थानीय स्वाद की भी अपेक्षा करते हैं। इस वृद्धि के अनुरूप, ब्रांड प्रमुख महानगरीय बाजारों में भी विस्तार कर रहा है और जल्द ही दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई, पुणे और हैदराबाद में नए स्टोर खोलेगा।

कॉफी की बढ़ती मांग
भारत भले ही पारंपरिक रूप से चाय-प्रधान देश हो, लेकिन कॉफी की लहर बढ़ रही है, विशेष रूप से जेनरेशन जेड और मिलेनियल्स के बीच। महेंद्र ने कहा, "पहले कॉफी एक विलासिता थी, अब यह एक बयान बन गई है। आज की पीढ़ी कैफे से काम करने के बजाय कॉफी के लिए जगह बनाना पसंद करती है।" दक्षिण भारतीय फिल्टर कॉफी ने हाल ही में टेस्टएटलस की 'दुनिया की शीर्ष 38 कॉफी' की सूची में दूसरा स्थान हासिल किया है, जो भारत में उगाई जाने वाली इस कॉफी की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है।

ब्राजील और वियतनाम में वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतें बढ़ गई हैं, जिससे भारतीय उत्पादकों को बढ़ावा मिला है, जो अब हाल के वर्षों में अपनी सर्वोत्तम दरें प्राप्त कर रहे हैं। इस बीच, भारत का वार्षिक कॉफी निर्यात 1-1.2 अरब अमेरिकी डॉलर के बीच मजबूत बना हुआ है।

"आगे के पांच साल देखें तो हर साल रोमांचक होता है। अगर घरेलू खपत 40% से बढ़कर 60% भी हो जाए, तो यह एक बड़ी जीत होगी," महेंद्र ने बताया कि उनका अगला लक्ष्य भारत भर के टियर-2 और टियर-3 शहरों में अपनी उपस्थिति का विस्तार करना है और टियर-3 शहरों और गांवों में जाना चाहते हैं, छोटी-छोटी दुकानें खोलना चाहते हैं, लोगों को नौकरी या फ्रैंचाइजी देना चाहते हैं। अत:वे भी एक अच्छी कॉफी के हकदार हैं।"

बढ़ती वैश्विक उपस्थिति
हट्टी कापी पहले से ही लंदन में कॉफी बना रही है और आने वाले समय में एम्स्टर्डम, अमेरिका, दुबई और यूरोप के अन्य हिस्सों में भी इसकी शुरुआत होगी। महेंद्र ने गर्व से बताया "कर्नाटक के इस ब्रांड ने सुबह 5 बजे 5 रुपये वाली फिल्टर कॉफी परोसने से शुरुआत की थी और अब हमारे कई शहरों और देशों में संपर्क केंद्र हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है।" उन्होंने आगे कहा कि उनका मानना ​​है कि भारतीय कॉफी का एक अनूठा स्वाद है, जिसका दावा वैश्विक स्तर पर नहीं किया जाता, हालांकि कई अंतरराष्ट्रीय ब्रांड भारतीय कॉफी खरीदते हैं।

"अब समय आ गया है कि हम कहें कि भारतीय कॉफ़ी सर्वश्रेष्ठ में से एक है। हम अंतर्राष्ट्रीय रुचि देख रहे हैं, ब्रांड भारत आ रहे हैं और यहां6 स्टोर खोल रहे हैं, जो कॉफी की प्रबल संभावनाओं को दर्शाता है।" उन्होंने जोर देकर कहा "हमारा मिशन हर जगह बढ़िया क्वॉलिटी वाली टेस्टी भारतीय फिल्टर कॉफी उपलब्ध कराना है।"

Entrepreneur Blog Source Link This article was originally published by the Restaurantindia.in. To read the full version, visit here Entrepreneur Blog Link
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