भारत में फूड डिलीवरी का बाजार अब सबसे तेज़ रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। लोग बाहर खाने की बजाय घर पर आराम से खाना मंगवाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। यही वजह है कि यह इंडस्ट्री 2030 तक 140 बिलियन डॉलर से ज्यादा की हो सकती है, और हर साल लगभग 28% की तेज़ बढ़त दिखा रही है।
जब बदलाव ही भविष्य बन गया
Charcoal Eats के को-फाउंडर रोहन मेहरोत्रा बताते हैं कि कुछ साल पहले तक डिलीवरी उनकी प्राथमिकता नहीं थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं।“डिलीवरी अब हमारे बिज़नेस का सबसे बड़ा हिस्सा है। मार्केट इतनी तेजी से बदला कि हम भी हैरान रह गए,” उन्होंने कहा। यानी अब यह बदलाव मजबूरी नहीं बिज़नेस का भविष्य है।
MousseStruck के फाउंडर साहिल वोरा ने बताया कि उनका ब्रांड तो डिलीवरी की जरूरतों को ध्यान में रखकर ही बना था। “हमें ऐसे प्रोडक्ट्स बनाने पड़े जो एक निश्चित तापमान में कुछ समय तक टिक सकें। यह हमारी SOP का हिस्सा बन गया।”वर्ष 2018-19 के समय जब Swiggy और Zomato तेजी से बढ़ रहे थे, वही समय MousseStruck जैसे ब्रांडों के लिए नवाचार और सर्वाइवल का दौर था।
डाइन-इन से डिलीवरी तक: सीखें और बदलाव
Ministry of Naan के संस्थापक आयुष सहानी ने माना कि उन्होंने सोचा था डिलीवरी आसान होगी, पर यह उनकी अपेक्षा से कहीं ज्यादा मुश्किल निकली।
“मुझे लगा था कि किराया कम और स्टाफ कम होगा, तो मार्जिन अच्छा होगा। लेकिन डिलीवरी मार्जिन बहुत तंग होता है,” उन्होंने बताया।
उन्होंने कहा कि अब वे हर नए डाइन-इन रेस्टोरेंट की प्लानिंग में डिलीवरी को एक जरूरी हिस्सा मानते हैं।
घर तक पहुंचाना भी अब ‘रेस्टोरेंट एक्सपीरियंस’ देना है
Aspect Hospitality के सीईओ संदीप सिंह, जो OPA, Radiobar और Akina जैसे लोकप्रिय डाइन-इन रेस्टोरेंट्स चलाते हैं, कहते हैं। “आज ग्राहक घर पर वही अनुभव चाहता है जो रेस्टोरेंट में मिलता है। अच्छा खाना, अच्छी पैकेजिंग, और सही समय पर डिलीवरी।” उनके मुताबिक बॉक्स खोलते ही खाना गर्म, सुगंधित और ‘रेडी-टू-ईट’ होना चाहिए। Aspect ने इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए Nom Nom Express जैसे डिलीवरी-प्रथम ब्रांड बनाए, जो अब 50 से ज्यादा आउटलेट्स तक पहुंच गए हैं।
Rebel Foods: मल्टी-ब्रांड डिलीवरी का बादशाह
Rebel Foods के बिज़नेस हेड पारस गोरी बताते हैं कि वे एक “बुक-ऑफ-ब्रांड्स” कंपनी हैं। उनके पास Faasos, Behrouz Biryani, Sweet Truth, Lunchbox जैसे कई बड़े डिलीवरी ब्रांड हैं। उनका प्रोडक्ट बनने से पहले कड़े टेस्ट से गुजरता है। “अगर कोई प्रोडक्ट हमारे बेंचमार्क पूरे नहीं करता, तो वह स्केल नहीं होता। और अगर समय के बाद भी नहीं करता, तो उसे हटा दिया जाता है।” उनके अनुसार यह इंडस्ट्री तेज है, और टिके रहने के लिए लगातार प्रयोग और नवाचार जरूरी है।
किचन भी बदल गए अब यह मिनी-फैक्ट्री जैसा ऑपरेशन है
संदीप सिंह बताते हैं कि डिलीवरी-फर्स्ट दुनिया में किचन का रोल बदल चुका है। अब केंद्रीय किचन, R&D, क्वालिटी कंट्रोल और सही तापमान में डिलीवरी all-in-one सिस्टम बन गया है। “स्केल तब ही होता है जब प्रोडक्ट हर बार एक जैसा मिले,” संदीप कहते हैं। सही उपकरण, कम जगह में स्मार्ट डिजाइन, और मल्टी-ब्रांड कुकिंग सब कुछ एक साथ चलना पड़ता है।
Rebel Foods के गोरी कहते हैं, “हर इंच का इस्तेमाल जरूरी है। उपकरणों का क्रॉस-यूटिलाइजेशन और पूरी तरह डेटा-ड्रिवन किचन अब न्यूनतम आवश्यकता है।”
निष्कर्ष
डिलीवरी ने न सिर्फ रेस्टोरेंट चलाने का तरीका बदला है, बल्कि बिज़नेस मॉडल, किचन डिजाइन, पैकेजिंग और ग्राहक अनुभव सब कुछ फिर से परिभाषित किया है। अब यह सिर्फ भोजन की डिलीवरी नहीं, बल्कि एक पूरी तरह नया ‘होम-डाइनिंग’ अनुभव बन चुका है।
भारत की फूड डिलीवरी इंडस्ट्री तेजी से एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ रही है जहाँ तकनीक, नवाचार और ग्राहक अपेक्षाएँ ही सफलता का असली नुस्खा बनेंगी।