विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर ने सोमवार को कहा कि सरकार क्वांटम अनुसंधान में 100 इंजीनियरिंग कॉलेजों को स्नातक स्तर के लघु कार्यक्रमों को पढ़ाने के लिए प्रयोगशालाएं स्थापित करने हेतु एक करोड़ रुपये की सहायता देने की योजना बना रही है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (आईआईटी बॉम्बे) में एक समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि डीएसटी स्टार्ट-अप्स को समर्थन देने और अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के विकास के लिए क्षमता निर्माण हेतु एक क्वांटम एल्गोरिदम तकनीकी समूह स्थापित करने की भी योजना बना रहा है।
करंदीकर ने कहा "हम स्नातक स्तर के लघु कार्यक्रमों की शिक्षा के लिए सौ इंजीनियरिंग कॉलेजों और संस्थानों में शिक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित करने जा रहे हैं। दरअसल, हमें इसके लिए 500 से ज्यादा प्रस्ताव मिल चुके हैं, जिनमें से हम लगभग 100 का चयन करेंगे।"
उन्होंने कहा, "डीएसटी को राष्ट्रीय अंतःविषय साइबर भौतिक प्रणाली मिशन और राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के तहत मजबूत प्रगति देखकर गर्व है, जहां आईआईटी बॉम्बे प्रमुख नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है।"
इसी संदर्भ में उन्होंने आगे कहा कि “आईआईटी बॉम्बे के प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र ने स्टार्टअप्स को समर्थन देने, नई टेक्नोलॉजी को विकसित करने और हाल ही में भारतीय भाषाओं के बड़े मॉडल पर काम शुरू करने के माध्यम से उल्लेखनीय प्रगति की है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के अंतर्गत सभी चार केन्द्रों (अर्थात् आईआईएससी बेंगलुरु, आईआईटी मद्रास, आईआईटी दिल्ली और आईआईटी बॉम्बे) ने पिछले कुछ महीनों में प्रभावशाली प्रगति दिखाई है और आईआईटी बॉम्बे का ‘क्वांटम सेंसिंग हब’ विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सोमवार को आईआईटी बॉम्बे के अपने दौरे के दौरान राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (एनक्यूएम) के तहत दो प्रमुख अत्याधुनिक क्वांटम फैब्रिकेशन और केंद्रीय सुविधाओं की स्थापना की घोषणा की।
720 करोड़ रुपये के कुल निवेश के साथ, आईआईटी बॉम्बे और आईआईएससी बेंगलुरु में स्थापित की जाने वाली ये दो केंद्रीय निर्माण प्रमुख सुविधाएं क्वांटम कंप्यूटिंग चिप्स और क्वांटम सेंसर के निर्माण को स्वदेशी बनाएंगी, जिससे भारत में उनके विकास में तेजी आएगी।
उन्होंने इस पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि “आईआईटी दिल्ली और आईआईटी कानपुर में दो अतिरिक्त लघु स्तरीय सुविधाएं भी स्थापित की जाएंगी।“ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अब तक भारत को क्वांटम उपकरणों के निर्माण के लिए विदेशों में स्थित सुविधाओं पर काफी हद तक निर्भर रहना पड़ता था, जिससे टेक्नोलॉजी विकास की प्रक्रिया को गति देने में चुनौतियां आती थीं।
मंत्री ने कहा कि ये सुविधाएं, जो देश भर के शैक्षणिक संस्थानों, विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों, उद्योग, स्टार्ट-अप, एमएसएमई और रणनीतिक क्षेत्रों के लिए सुलभ होंगी, निर्माण प्रक्रिया को तेज करने में मदद करेंगी और विशेष रूप से स्टार्टअप और एमएसएमई में प्रौद्योगिकी विकास, प्रोटोटाइपिंग और लघु-स्तरीय उत्पादन का समर्थन करेंगी
वहीं इस बारे में सिंह ने कहा कि “इससे क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग, सुपरकंडक्टिविटी, क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम सेंसिंग, फोटोनिक्स, स्वास्थ्य देखभाल प्रौद्योगिकियों और हरित ऊर्जा उपकरणों में भारत की क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।“ उन्होंने आगे कहा कि तरल हीलियम एमआरआई प्रणाली, उन्नत सामग्री लक्षण वर्णन और क्रायोजेनिक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) के लिए अपरिहार्य है।
सिंह ने कहा "नई सुविधा जो अब राष्ट्र को समर्पित है और उद्योगों, विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों द्वारा उपयोग के लिए खुली है, एक कुशल हीलियम पुनर्प्राप्ति प्रणाली से सुसज्जित है, जिससे क्रायोजेनिक प्रयोगों की लागत को वर्तमान व्यय के लगभग दसवें हिस्से तक कम करने की उम्मीद है, जबकि दुनिया के सबसे दुर्लभ संसाधनों में से एक को संरक्षित किया जा सकेगा।"
मंत्री ने कहा कि जैसे-जैसे क्वांटम कंप्यूटरों की वैश्विक मांग बढ़ रही है, भारत को भी अपने क्रायोजेनिक्स बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा। उन्होंने कहा कि क्वांटम लैब की प्रगति और नई क्रायोजेनिक्स सुविधा, अगली पीढ़ी के विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत के तेजी से बढ़ते नेतृत्व को दर्शाती है।
उन्होंने कहा कि "आईआईटी बॉम्बे का कार्य यह दर्शाता है कि किस प्रकार शिक्षा जगत, सरकार और उद्योग मिलकर एक विश्वस्तरीय वैज्ञानिक इकोसिस्टम का निर्माण कर सकते हैं जो भविष्य की प्रौद्योगिकियों को आकार देने में सक्षम हो।"