
झारखंड में बिना मान्यता के चल रहे निजी स्कूलों पर अब सरकार सख्त कार्रवाई करने की तैयारी में है। झारखंड हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने ‘झारखंड निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियमावली’ में संशोधन किया है। संशोधन के तहत अब राज्य के सभी निजी स्कूलों के लिए मान्यता प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया है।
राज्य में वर्तमान में लगभग 45,000 निजी गैर-मान्यता प्राप्त विद्यालय संचालित हो रहे हैं, जो शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में गरीब और पिछड़े तबके के बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। इन स्कूलों में अधिकांश बच्चे उन परिवारों से आते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है।
केंद्र सरकार के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव संजय कुमार के अनुसार, झारखंड में यू-डाइस कोड प्राप्त कुल 5,879 स्कूल हैं, जिनमें 8,37,897 छात्र और 46,421 शिक्षक कार्यरत हैं।
झारखंड प्राइवेट स्कूल एंड वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष अरविंद कुमार ने बताया कि शिक्षा विभाग ने निर्देश दिया है कि सभी स्कूल जल्द से जल्द ऑनलाइन आवेदन कर मान्यता प्राप्त करें।
हालांकि, छोटे निजी स्कूलों का कहना है कि 2019 में बनाए गए संशोधित नियमों के कारण मान्यता प्राप्त करने में कई कठिनाइयां सामने आ रही हैं। सरकार द्वारा तय जमीन के मानकों को पूरा करना अधिकांश स्कूलों के लिए मुश्किल है।
संशोधित नियमों के अनुसार –
- मध्य विद्यालय (कक्षा 1 से 8) के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 1 एकड़ और शहरी क्षेत्रों में 75 डिसमिल जमीन आवश्यक है।
- प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 1 से 5) के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 60 डिसमिल और शहरी क्षेत्रों में 40 डिसमिल जमीन की आवश्यकता होगी।साथ ही, यह जमीन कम से कम 30 वर्षों के लिए रजिस्टर्ड या संस्था के नाम पर लीज होनी चाहिए।
लेकिन आदिवासी समुदाय द्वारा संचालित कई विद्यालयों के लिए यह नियम मुश्किल है, क्योंकि झारखंड में लागू सीएनटी और एसपीटी एक्ट के तहत आदिवासी संस्थाओं को केवल 5 वर्षों तक लीज पर भूमि दी जा सकती है। इस कानून के चलते कई स्कूल मान्यता की शर्तें पूरी नहीं कर पा रहे हैं।
शिक्षा विभाग का कहना है कि सरकार इन नियमों को लागू करने के साथ ही ऐसे स्कूलों के लिए व्यवहारिक समाधान खोजने पर भी विचार कर रही है, ताकि गरीब बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो।