भारत में न्यूट्रास्यूटिकल सेक्टर यानी सप्लीमेंट्स, विटामिन, हेल्थ फूड और फंक्शनल बेवरेज का बाजार तेज़ी से बढ़ रहा है। महामारी के बाद लोग पहले से कहीं ज्यादा अपनी सेहत को लेकर सजग हो गए हैं। इसी कारण यह बाजार 6–8 बिलियन डॉलर के छोटे हिस्से से लेकर 40 बिलियन डॉलर से अधिक के बड़े अनुमान तक पहुंच रहा है। हर अनुमान यही दिखाता है कि आने वाले वर्षों में यह उद्योग डबल-डिजिट रफ्तार से बढ़ेगा।
पिछले 15 सालों में भारत में 270 से ज्यादा न्यूट्रास्यूटिकल स्टार्टअप उभरे हैं और सिर्फ तीन साल में इस सेक्टर में 180 मिलियन डॉलर से अधिक का निवेश आया है। आज कुल निवेश 500 मिलियन डॉलर से भी ऊपर माना जा रहा है।
बीमार होने पर इलाज से ‘हर दिन की सेहत’ की ओर बदलाव
उद्योग के जानकारों का कहना है कि सबसे बड़ा बदलाव लोगों की सोच में आया है। Samāh की संस्थापक कीर्ति असीष कहती हैं, “पहले लोग तब दवाई लेते थे जब समस्या हो जाती थी, अब वे रोज़मर्रा की सेहत सुधारना चाहते हैं।”
Nutrify Today के संस्थापक अमित श्रीवास्तव कहते हैं कि यह ‘सिक-केयर’ से ‘सेल्फ-केयर’ की ओर स्थायी बदलाव है।
बी ब्रांड की सीईओ दीक्षा राजानी बताती हैं कि सप्लीमेंट लेने वालों की औसत उम्र 40+ से घटकर 24 साल तक आ गई है। युवा अब नींद, हार्मोन बैलेंस, आंतों की सेहत और मानसिक एकाग्रता जैसे क्षेत्रों पर पहले से बहुत ज्यादा खर्च कर रहे हैं।
महिलाओं में भी यह बदलाव तेज़ है। Samāh के अनुसार अब महिलाएँ PMS, PCOS, पोस्टपार्टम रिकवरी जैसी समस्याओं के लिए प्राकृतिक और फूड-आधारित सपोर्ट ढूंढती हैं, दवाइयों पर निर्भरता कम कर रही हैं।
न्यूट्रास्यूटिकल्स का बदलता रूप
शुरुआत में यह सेक्टर सिर्फ टैबलेट और साधारण मल्टीविटामिन तक सीमित था। अब यह कई आधुनिक फॉर्मेट में बदल चुका है:
गमीज़ और च्यूएबल्स – युवा ग्राहकों में तेजी से लोकप्रिय
फंक्शनल फूड और ड्रिंक्स – रोज़मर्रा की दिनचर्या में आसानी से फिट
महिला स्वास्थ्य और हार्मोन हेल्थ – सबसे तेज़ बढ़ता क्षेत्र
गट हेल्थ, प्रोटीन, ब्यूटी-फ्रॉम-विदिन – वैज्ञानिक आधार और मापने योग्य परिणामों के कारण तेजी से अपनाया जा रहा है।
गट हेल्थ को अब "वेलनेस का नया ऑपरेटिंग सिस्टम" माना जा रहा है।
राजानी के अनुसार, गंभीर ग्राहक अब गमीज़ से कैप्सूल और पाउडर की ओर लौट रहे हैं क्योंकि उनमें क्लीनिकल डोज़ मिलता है। बिक्री चैनल भी बदल रहे हैं, डिस्कवरी डिजिटल है, पर खरीद ओम्नीचैनल हो रही है। फ़ार्मेसी और क्लिनिक भरोसे का बड़ा आधार बने हुए हैं।
निवेशकों की तेज़ दिलचस्पी
यह सेक्टर बढ़ रहा है तो निवेश भी तेज़ी से आ रहा है। HUL ने OZiva खरीदा, Marico ने Plix में निवेश किया। Dabur, Himalaya, Cipla Health, Abbott और Amway जैसे बड़े खिलाड़ी भी इसी क्षेत्र में सक्रिय हैं।
Fireside Ventures के विनय सिंह कहते हैं, “मिलेनियल उम्रदराज़ हो रहे हैं और अब वे प्रिवेंटिव हेल्थ पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं। यही न्यूट्रास्यूटिकल्स की सबसे बड़ी ताकत है।”
सख्त नियम: उद्योग के लिए नई चुनौती
तेजी से बढ़ते इस सेक्टर के सामने अब कड़े नियमों की चुनौती है। FSSAI ने पिछले दो वर्षों में—गलत लेबलिंग,अनअप्रूव्ड इंग्रीडिएंट, दवाइयों जैसी दावे, प्रोटीन सप्लीमेंट पर गलत दावों पर कई सख्त कार्रवाई की है।
सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के लिए भी अब सख्त नियम हैं गलत दावे पर सीधी जिम्मेदारी तय होती है।
संस्थापकों का मानना है कि यह जरूरी है क्योंकि न्यूट्रास्यूटिकल न पूरी तरह फूड है और न पूरी तरह दवा। बेहतर नियम बाजार को साफ और भरोसेमंद बनाते हैं।
अगला चरण: ‘ज़िम्मेदार न्यूट्रिशन’
महामारी के बाद इम्यूनिटी बूस्टर जैसी सामान्य चीजों की जगह अब क्लीनिकली-टेस्टेड उत्पाद, पर्सनलाइज्ड न्यूट्रिशन, डायग्नोस्टिक्स और बायोमार्कर आधारित सप्लीमेंट,वियरेबल और AI आधारित हेल्थ इनसाइट, जैसे उन्नत समाधान आ रहे हैं।
कुल मिलाकर, भारत का न्यूट्रास्यूटिकल सेक्टर सिर्फ बढ़ नहीं रहा, बल्कि परिपक्व हो रहा है — अधिक वैज्ञानिक, अधिक पारदर्शी और अधिक जिम्मेदार बनकर। यह आने वाले दशक के सबसे बड़े हेल्थकेयर अवसरों में से एक बन सकता है।