DoT के नए निर्देश: मैसेजिंग ऐप्स से लेकर डिजिटल सेवाओं तक बढ़ी चुनौतियाँ

DoT के नए निर्देश: मैसेजिंग ऐप्स से लेकर डिजिटल सेवाओं तक बढ़ी चुनौतियाँ

DoT के नए निर्देश: मैसेजिंग ऐप्स से लेकर डिजिटल सेवाओं तक बढ़ी चुनौतियाँ
डॉट के नए सिम-बाइंडिंग और वेब सेशन लॉगआउट नियमों ने मैसेजिंग ऐप्स से लेकर ई-कॉमर्स और बैंकिंग जैसी डिजिटल सेवाओं के लिए बड़ी अनुपालन चुनौती खड़ी कर दी है।

डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशंस (DoT) के ताज़ा निर्देशों ने व्हाट्सऐप और टेलीग्राम जैसे मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स के लिए एक नई कम्प्लायंस चुनौती खड़ी कर दी है। अगले तीन महीनों में इन प्लेटफॉर्म्स को “सिम बाइंडिंग” और समय-समय पर वेब सेशन लॉगआउट जैसी नई सुरक्षा शर्तें लागू करनी होंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नियम केवल मैसेजिंग ऐप्स तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि बैंकिंग, ई-कॉमर्स और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स तक भी जल्द बढ़ सकते हैं।

यह पूरा मामला टेलीकम्युनिकेशन साइबरसिक्योरिटी अमेंडमेंट रूल्स 2025 से जुड़ा है, जो “टेलीकॉम आइडेंटिफायर यूज़र एंटिटीज़” (TIUEs) नाम की नई श्रेणी लाता है। TIUEs वे प्लेटफॉर्म्स हैं जो मोबाइल नंबर या IMEI जैसे पहचानकर्ताओं का उपयोग करके यूज़र रजिस्ट्रेशन करते हैं। इस श्रेणी में अब कई डिजिटल सेवाएँ शामिल हो सकती हैं, न कि केवल व्हाट्सऐप, स्नैपचैट या टेलीग्राम जैसे ऐप्स।

सिम बाइंडिंग पर बंटे मत

सिम बाइंडिंग को लेकर उद्योग जगत में तीखी बहस छिड़ गई है। COAI के डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. एस.पी. कोच्चर ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि यह डिजिटल स्पेस में ट्रेसबिलिटी बढ़ाएगा और धोखाधड़ी पर लगाम लगाएगा। COAI का तर्क है कि वर्तमान में व्हाट्सऐप जैसे ऐप केवल पहली बार इंस्टॉलेशन के दौरान सिम से लिंक होते हैं। इसके बाद चाहे सिम निकाल दिया जाए या बदल दिया जाए, ऐप चलता रहता है — और यहीं से फ़्रॉड की शुरुआत होती है।

सिम बाइंडिंग अनिवार्य होने पर ऐप और सिम का लगातार लिंक बना रहेगा। सुरक्षा विशेषज्ञ नोएल वर्गीज का कहना है कि कई मामलों में देखा गया है कि डिऑक्टिवेटेड नंबर नए यूज़र को मिलने पर पुराने अकाउंट्स में मैसेज और OTP आते रहते हैं। नई व्यवस्था से इस तरह की सुरक्षा खामियाँ काफी हद तक कम हो सकती हैं।

व्यवसायों और उपयोगकर्ताओं पर असर

हालाँकि, विशेषज्ञ कहते हैं कि इस कदम से बड़ी असुविधाएँ भी पैदा हो सकती हैं। भारत में व्हाट्सऐप बिज़नेस के 1.5 करोड़ से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ता हैं। लाखों छोटे व्यवसाय — जैसे क्लाउड किचन, रीसेलर्स और होम-बेस्ड वेंचर्स — पूरी तरह व्हाट्सऐप पर निर्भर हैं। छह घंटे में एक बार अनिवार्य लॉगआउट और मल्टी-डिवाइस प्रतिबंध उनके कामकाज में बड़ी बाधा साबित हो सकते हैं।

टेक लॉयर मिशी चौधरी के अनुसार, बार-बार ऑथेंटिकेशन से टीम-आधारित वर्कफ़्लो और ऑपरेशंस प्रभावित होंगे। गार्टनर की विश्लेषक अपेक्षा कौशिक का कहना है कि साइबर खतरों के दौर में यह बदलाव सुरक्षा को मजबूत करेगा, लेकिन छोटे व्यवसायों के लिए यह बोझ भी बढ़ाएगा। बड़े उद्यमों को भी हजारों कर्मचारियों और डिवाइसों के लिए अलग इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा।

सिम बाइंडिंग — सुरक्षा समाधान या दिखावटी उपाय?

V4Web Security के संस्थापक रितेश भाटिया का कहना है कि सिम बाइंडिंग सुरक्षा बढ़ाती है, पर यह “फूलप्रूफ” नहीं है। फर्जी या म्यूल सिम कार्ड्स, सोशल इंजीनियरिंग और क्रेडेंशियल चोरी जैसे हथकंडे अभी भी साइबर अपराधियों के पास रहेंगे। इसलिए सिम बाइंडिंग को केवल एक सुरक्षा लेयर माना जाना चाहिए, न कि संपूर्ण समाधान।

Broadband India Forum (BIF) की कड़ी आलोचना

बीआईएफ (BIF) ने इस नीति की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि सिम बाइंडिंग और अनिवार्य लॉगआउट से लाखों उपयोगकर्ताओं को असुविधा होगी, जबकि लाभ सीमित हैं। NRIs, ट्रैवलर्स, वे उपयोगकर्ता जो अपने नंबर Wi-Fi पर उपयोग करते हैं, या वे लोग जो अलग-अलग डिवाइसेज़ पर अकाउंट चलाते हैं सभी प्रभावित होंगे। इसके अलावा बुज़ुर्ग और कम-तकनीकी ज्ञान वाले उपयोगकर्ताओं के लिए बार-बार लॉगिन करना कठिन होगा।

निष्कर्ष

सिम बाइंडिंग नियम भारत की डिजिटल सुरक्षा को मजबूत करने का प्रयास है, पर इसके साथ विवाद भी गहराता जा रहा है। सुरक्षा, गोपनीयता, उपयोगकर्ता अनुभव और व्यवसायिक संचालन इन सभी के बीच संतुलन बनाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा।

कई संगठनों का मानना है कि बिना परामर्श और प्रभाव आकलन के लागू किया गया कोई भी नियम व्यापक अव्यवस्था पैदा कर सकता है। आने वाले दिनों में यह देखने वाली बात होगी कि क्या सरकार और उद्योग जगत इस मुद्दे पर किसी मध्य मार्ग पर पहुँचते हैं, या यह बहस और लंबी चलेगी।

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