स्टार्टअप दुनिया में ‘अनदेखे संकट’ को पहचानते ज़ाल कस्तूर: संस्थापकों के लिए सहारा

स्टार्टअप दुनिया में ‘अनदेखे संकट’ को पहचानते ज़ाल कस्तूर: संस्थापकों के लिए सहारा

स्टार्टअप दुनिया में ‘अनदेखे संकट’ को पहचानते ज़ाल कस्तूर: संस्थापकों के लिए सहारा
ज़ाल कस्तूर संस्थापकों को मानसिक और भावनात्मक सहारा देने पर काम कर रहे हैं, ताकि वे अकेलेपन, तनाव और बर्नआउट से निपट सकें। उनका Founder Circle उद्यमियों के लिए सुरक्षित स्थान प्रदान करता है, जहाँ वे खुलकर अपने अनुभव साझा कर सकते हैं।

भारत और एशिया पैसिफिक (APAC) में 15 वर्षों तक कई कंपनियाँ खड़ी करने के बाद, ज़ाल कस्तूर आज उद्यमियों के लिए भावनात्मक मार्गदर्शक बन चुके हैं। एक कोच के रूप में वे उन समस्याओं में मदद करते हैं जिनका सामना लगभग हर संस्थापक करता है—अकेलापन, दबाव, बर्नआउट और असुरक्षा। उनकी भूमिका अब सिर्फ बिज़नेस सलाहकार की नहीं रही, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की बनती जा रही है जिस पर संस्थापक भरोसा कर अपनी भावनाएँ साझा कर सकते हैं।

कस्तूर बताते हैं कि वे मूल रूप से पिच कोचिंग और रणनीति पर काम करते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोग उनसे अपने गहरे भावनात्मक संघर्ष साझा करने लगे। तीसरे सत्र तक पहुंचते-पहुंचते बातचीत पिच डेक से हटकर सह-संस्थापक तनाव, बर्नआउट, फियर ऑफ फेल्योर और बोर्ड प्रेशर पर होने लगी। उनका मानना है कि संस्थापक उन्हें इसलिए सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि वे उनसे कोई अपेक्षा नहीं रखते—न निवेश, न संरेखण, न प्रदर्शन।

उनके अनुसार, संस्थापकों का अकेलापन आज के समय की सबसे बड़ी “अनदेखी समस्या” है। एशियाई संस्कृति में मदद मांगना कमजोरी माना जाता है, इसलिए संस्थापक अक्सर अपनी भावनाओं को दबाते रहते हैं। उन्हें हमेशा खुद को अडिग, आत्मविश्वासी और स्थिर दिखाना होता है, लेकिन यही दबाव एक मानसिक जाल बन जाता है, जो धीरे-धीरे उनकी clarity और creativity को प्रभावित करता है।

हाल ही में उनका Founder Circle कार्यक्रम 48 घंटों में दो बार sold out हुआ, जो बताता है कि APAC के संस्थापक सुरक्षित बातचीत की जगह के लिए कितने भूखे हैं। कस्तूर ने पिछले दो वर्षों में 100 से अधिक वर्कशॉप की हैं, जिससे उन्हें पता चला कि संस्थापक किन भावनात्मक संघर्षों से जूझते हैं—भय, तनाव, भ्रम, संघर्ष और भविष्य की अनिश्चितताएँ। हैरानी की बात यह थी कि कार्यक्रम में कई कॉर्पोरेट लीडर्स भी शामिल हुए और बोले, “हम भी यही महसूस करते हैं।”

कस्तूर बताते हैं कि कई सफल दिखने वाले उद्यमी अंदर से बेहद असुरक्षित होते हैं। कंपनी की ग्रोथ और संस्थापक के आत्मविश्वास में बढ़ती खाई एक बड़ा संकेत है। जिम्मेदारियाँ न सौंपना, मजबूत लोग न रखना, और लगातार खुद पर भार उठाए रखना अक्सर डर से उपजता है—अहंकार से नहीं। भावनात्मक रूप से थकान के संकेत जैसे चिड़चिड़ापन, अचानक ऊर्जा के स्पाइक्स और फिर disengagement भी लगातार दिखाई देते हैं।

वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि उद्यमशीलता का असली दर्द दुनिया नहीं समझती। लोग सिर्फ सफलता देखते हैं—रोशनी, फंडिंग और तालियाँ—लेकिन वे त्याग नहीं देखते: मिस हुए परिवारिक पल, तनावभरी रातें, और पेरोल के बारे में चिंता। एशिया में सामाजिक अपेक्षाएँ इस बोझ को और बढ़ा देती हैं, क्योंकि वहाँ उद्यमशीलता को तब तक स्वीकार नहीं किया जाता जब तक वह सफल साबित न हो जाए।

कस्तूर का मानना है कि जब संस्थापक अकेला महसूस करता है, तो कंपनी भी इसका असर झेलती है। डर और अकेलेपन से चलने वाला नेतृत्व टीम को भी चिंता में डाल देता है, मनोबल गिरा देता है और निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर कर देता है। धीरे-धीरे यह संगठनात्मक संस्कृति को भी नुकसान पहुँचाता है, जिससे पूरी कंपनी प्रभावित होती है।

आगे की सोच रखते हुए वे चाहते हैं कि आने वाले वर्षों में भावनात्मक समर्थन स्टार्टअप इकोसिस्टम का औपचारिक हिस्सा बन जाए। जैसे accelerators और pitch training आम हैं, वैसे ही founders की mental well-being भी प्राथमिकता बननी चाहिए। वे कहते हैं, “जब संस्थापक दिखावा छोड़कर सच बोलते हैं, तो वे बेहतर कंपनियाँ और बेहतर जीवन दोनों बनाते हैं।”

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