युवा क्यों छोड़ रहे हैं चेन ब्रांड? बढ़ रहा है स्टैंडअलोन कैफ़े ट्रेंड

युवा क्यों छोड़ रहे हैं चेन ब्रांड? बढ़ रहा है स्टैंडअलोन कैफ़े ट्रेंड

युवा क्यों छोड़ रहे हैं चेन ब्रांड? बढ़ रहा है स्टैंडअलोन कैफ़े ट्रेंड
भारत का कैफ़े बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहे है, जहां चेन ब्रांड्स के बजाय इंडिपेंडेंट कैफ़े ग्राहक अनुभव, माहौल और अनोखे कॉन्सेप्ट के कारण अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। बढ़ती कॉफी खपत, युवाओं की बदलती पसंद और सोशल मीडिया ट्रेंड्स इन कैफ़े की मांग को बढ़ा रहे है।

भारत का कैफ़े बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है, लेकिन इसकी असली रफ़्तार स्वतंत्र यानी इंडिपेंडेंट कैफ़े तय कर रहे हैं। वर्ष 2024 में भारत का कैफ़े मार्केट लगभग 340–440 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुमानित है और 2030 तक इसके 11% की रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है। बड़े ब्रांड्स के विस्तार के बावजूद, ज़्यादातर नए ग्राहक अभी भी इंडिपेंडेंट कैफ़े की ओर ही आकर्षित हो रहे हैं।

भारत में कॉफी की खपत भी लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2023 में घरेलू कॉफी खपत 91,000 टन तक पहुंच गई, जो शहरीकरण, प्रीमियमाइजेशन और युवा पीढ़ी की बदलती पसंद का नतीजा है। मेट्रो शहरों और विकसित हो रहे इलाकों में दूसरे कैफ़े की तुलना में स्टैंडअलोन कैफ़े को अधिक अवसर मिल रहे हैं।

बेंगलुरु स्थित Beku कैफ़े की संस्थापक प्रार्थना प्रसाद ने बताया कि कैफ़े का शोर सोशल मीडिया पर ज़्यादा दिखता है, जबकि वास्तविक संख्या अभी भी वैश्विक शहरों के मुकाबले कम है। उनके अनुसार, बेंगलुरु में 500 से 2,000 कैफ़े हैं, जबकि मांग हर दिन तेज़ी से बढ़ रही है। शहर के विस्तार के साथ कैफ़े विज़िट की रुचि भी लगातार बढ़ रही है।

इंडिपेंडेंट कैफ़े का सबसे बड़ा आकर्षण है उनका अनुभव। जहां चेन ब्रांड सुविधा देते हैं, वहीं स्वतंत्र कैफ़े अपने अनोखे माहौल, सजावट और भोजन के कारण अलग पहचान बनाते हैं। प्रार्थना मानती हैं कि लोग अब कुछ नया, मज़ेदार और इंस्टाग्राम-फ्रेंडली जगह चाहते हैं।

डोल्सी कैफ़े के  सीईओ  बालाजी एम का कहना है कि युवा ग्राहक अब “क्वालिटी से ज्यादा एक्सपीरियंस” का कॉम्बिनेशन चाहते हैं। खासकर मिलेनियल्स और Gen Z ऐसे कैफ़े ढूँढते हैं जहां असलियत हो, ग्लोबल फ्लेवर्स हों और माहौल फोटो-फ्रेंडली हो। यही वजह है कि इंडिपेंडेंट कैफ़े अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं।

बीनलोर कॉफ़ी रोस्टर्स (Beanlore Coffee Roasters) के सह-संस्थापक प्रसन्ना कुमार बताते हैं कि ग्राहक अब ज़्यादा जागरूक हैं। वे बीन्स, रोस्टिंग प्रोफाइल, सस्टेनेबिलिटी और ब्रूइंग तकनीकों के बारे में जानकारी रखते हैं। लोग अब “स्लो और क्वालिटी-ड्रिवन” अनुभवों की ओर झुक रहे हैं। डिजिटल जानकारी ने भी उनकी coffee-awareness बढ़ा दी है।

इंडिपेंडेंट कैफ़े की सबसे बड़ी चुनौती है सोशल मीडिया का दबाव और बढ़ती लागत। सोशल मीडिया मार्केटिंग और इन्फ्लुएंसर प्रमोशन महंगा पड़ता है। साथ ही Zomato और Swiggy जैसे एग्रीगेटर्स की भारी कमीशन फीस छोटे कैफ़े के लिए मुश्किल बन जाती है। किराया, कच्चे माल की बढ़ती कीमतें और स्टाफ रिटेंशन भी बड़ी बाधाएँ हैं।

फिर भी, इंडिपेंडेंट कैफ़े ही भविष्य के ट्रेंड सेट कर रहे हैं। स्पेशियलिटी कॉफी, एक्सपीरियंस-फोकस्ड मेन्यू, स्थानीय पहचान और नई ब्रूइंग तकनीक जैसी ट्रेंड्स इन्हीं कैफ़े से निकल रही हैं। बड़े चेन ब्रांड्स जहां स्केल पर ध्यान देते हैं, वहीं इंडिपेंडेंट कैफ़े रचनात्मकता, संवेदनशीलता और कहानी से उपभोक्ताओं का दिल जीत रहे हैं।

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