सरकार ने देशभर में बढ़े विरोध के बाद Sanchar Saathi ऐप को स्मार्टफोन्स में अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने वाले निर्देश को वापस ले लिया है। संचार मंत्रालय ने कहा कि ऐप की बढ़ती लोकप्रियता और लोगों की राय को ध्यान में रखते हुए इसे अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा। पहले मोबाइल कंपनियों—जैसे Apple, Samsung और Xiaomi—को इसे 90 दिनों के भीतर प्री-इंस्टॉल करने का आदेश दिया गया था, जिसके बाद भारी आलोचना शुरू हो गई थी।
Sanchar Saathi एक नागरिक-केंद्रित सुरक्षा प्लेटफॉर्म है, जिसे 2023 में पोर्टल और 2025 में ऐप के रूप में लॉन्च किया गया था। सरकार का कहना है कि इस प्लेटफॉर्म ने अब तक बड़ी मात्रा में धोखाधड़ी और चोरी से जुड़े मामलों को सुलझाया है। आंकड़ों के अनुसार, ऐप और पोर्टल ने अब तक 1.43 करोड़ गलत नंबर कनेक्शन बंद किए, 26 लाख मोबाइल फोन ट्रेस किए और उनमें से 7.23 लाख फोन असली उपयोगकर्ताओं तक पहुँचाए।
हालांकि, इसी ऐप के अनिवार्य इंस्टॉलेशन के निर्णय ने व्यापक विवाद खड़ा कर दिया। डिजिटल अधिकार कार्यकर्ताओं, गोपनीयता विशेषज्ञों और विपक्षी नेताओं ने इस कदम को सरकार के डिजिटल दायरे में अनावश्यक दखल और संभावित निगरानी का माध्यम बताया। उनका कहना था कि ऐप की कार्यप्रणाली और उसका दायरा बहुत अस्पष्ट है, जो भविष्य में दायरों के विस्तार—यानी "फंक्शन क्रीप"—का खतरा पैदा करता है।
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (Internet Freedom Foundation) (IFF) ने चेतावनी दी कि वर्तमान में ऐप एक साधारण IMEI चेकर या शिकायत निवारण उपकरण लगता है, लेकिन भविष्य में इसे सर्वर-साइड अपडेट्स के माध्यम से निगरानी उपकरण में बदला जा सकता है। संगठन ने कहा कि कोई भी स्पष्ट सीमा या सुरक्षा उपाय नहीं दिए गए हैं, जिससे ऐप SMS लॉग, VPN उपयोग, या ऐप स्कैनिंग तक का काम करने लगे, जो लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
टेक्नोलॉजी वकील मिशी चौधरी ने सरकार के इस कदम को मनमाना और अप्रभावी बताया। उनका कहना था कि फ्रॉड रोकने के लिए असली चुनौतियाँ सोशल इंजीनियरिंग, फिशिंग, SIM स्वैप, नकली लोन ऐप्स और स्कैम कॉल सेंटर्स में हैं, जिन्हें फोन-साइड ऐप की बजाय वित्तीय और नेटवर्क स्तर पर सख्ती से नियंत्रित किया जाना चाहिए। उन्होंने SIM-binding जैसे नए नियमों पर भी चिंता जताई।
संचार साथी (Sanchar Saathi) विवाद अभी शांत भी नहीं हुआ था कि सरकार ने सिम बाइंडिंग (SIM-binding ) नियम लागू कर दिए, जिसके तहत WhatsApp जैसी ऐप्स को केवल तब ही चलने की अनुमति होगी जब SIM फोन में मौजूद हो। सरकार का कहना है कि यह फर्जी पहचान और AI-जनित गलत सूचना रोकने का तरीका है। हालांकि आलोचकों के अनुसार यह नागरिकों पर अनावश्यक बोझ और निजता के लिए नई चुनौती है।
टेलिकॉम सेवा प्रदाताओं का संगठन COAI SIM-binding का समर्थन कर रहा है। उनका कहना है कि अभी कई ऐप SIM हटाने या नंबर के निष्क्रिय होने के बाद भी काम करते रहते हैं, जिससे धोखाधड़ी बढ़ने की संभावना रहती है। उनके अनुसार नई नीति डिजिटल दुनिया में अधिक जवाबदेही लाएगी और फर्जी उपयोग को कम करेगी।
कुल मिलाकर, Sanchar Saathi के अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन को वापस लेना नागरिकों की जीत माना जा रहा है, लेकिन SIM-binding और डिजिटल निगरानी से जुड़े अन्य नियमों पर बहस अभी जारी है। सरकार सुरक्षा और धोखाधड़ी रोकने के लिए नए कदम उठा रही है, जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि इन उपायों को नागरिक स्वतंत्रता और गोपनीयता की रक्षा करते हुए संतुलित रखना बेहद ज़रूरी है।