वास्तविक क्षमता का दोहन: विकास पूंजी और भारत के होनहार उद्यमी

वास्तविक क्षमता का दोहन: विकास पूंजी और भारत के होनहार उद्यमी

वास्तविक क्षमता का दोहन: विकास पूंजी और भारत के होनहार उद्यमी
दशकों तक भारतीय रेस्टोरेंट व्यवसाय एक ही सिद्धांत पर चलता रहा कि 'मुनाफा ही राजा' है।

जैसा कि इंडिगो हॉस्पिटैलिटी के अनुराग कटरियार याद करते हैं, "जब मैंने 30 साल से भी ज्यादा पहले अपना सफर शुरू किया था, तो हम बस यही समझते थे कि रेस्टोरेंट को पैसा कमाना ही चाहिए। मूल्यांकन, शेयरधारक मूल्य, या उद्यम मूल्य को अनलॉक करने जैसी अवधारणाएं तब मौजूद नहीं थीं। अगर आप काउंटर चला रहे थे, तो सफलता का एकमात्र पैमाना यही था कि पैसा आता रहे।"

वह एक अलग दौर था जब होटलों के बाहर बढ़िया भोजन करना अभी भी एक क्रांतिकारी विचार था। इंडिगो खुद उस परंपरा को चुनौती देने वाली पहली कंपनियों में से एक थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उद्योग जगत में क्रांतिकारी बदलाव आया है। आज एक 24 वर्षीय फाउंडर तीन साल में आईपीओ लाने की बात सहजता से कर रहा है। जबकि उस समय हमने आईपीओ शब्द भी नहीं सुना था, वह इस बात पर हंसे और कहा कि मुनाफे पर आधारित परिचालन से मूल्यांकन पर आधारित विकास की ओर बदलाव उद्योग के सबसे बड़े प्रतिमान परिवर्तनों में से एक है।“

टेक्नोलॉजी: रेस्तरां मालिकों के लिए नई रीढ़ 

रेबेल फूड्स जितनी प्रभावशाली ढंग से इस बदलाव को बहुत कम कंपनियां अपनाती हैं। रेबेल फूड्स के को- फाउंडर और वैश्विक सीईओ अंकुश ग्रोवर ने बताया कि "हम इंजीनियर और एमबीए थे और भारतीय पाककला में विज्ञान को शामिल करने की कोशिश कर रहे थे। पिज़्ज़ा या बर्गर एक सरल चार-चरणीय प्रक्रिया का पालन करते हैं। लेकिन भारतीय खाना? यह जटिल है। यही चुनौती थी।" रेबेल के शुरुआती साल लगातार बदलाव नए जवाबों और नए मॉडलों की खोज के बारे में थे, लेकिन एक अहसास ने सब कुछ बदल दिया।

नई तकनीक खाने की नई परिभाषा गढ़ेगी और रेस्टोरेंट का अनुभव, जो कभी चार दीवारों तक सीमित था, पैकेजिंग, डिलीवरी और डिजिटल जुड़ाव में बदल गया। स्विगी, ज़ोमैटो और क्लाउड किचन ने उपभोग को नया रूप दिया और माहौल नहीं बल्कि उत्पाद ही मुख्य आकर्षण बन गया।

रेबेल ने दो मुख्य दर्शन बनाए: यूएमडी और क्यूसीवीएच  

यूएमडी:
हर बार एक शानदार आनंद से भरा अनुभव और क्यूसीवीएच: गुणवत्ता, सुविधा, मूल्य और स्वच्छता, जो भोजन के चार स्थायी स्तंभ हैं। इस तकनीक-प्रथम सोच ने एक ऐसी प्रणाली बनाई, जहां आज रिबेल किचन 1,000 एसकेयू को संभालते हैं, ऐसा कुछ जिसके लिए अधिकांश कंपनियां टेक्नोलॉजी बनाने का प्रयास भी नहीं करेंगी।

विकास का नया खाका

नीरज सेठ की कहानी एक संयोगवश उद्यमी बनने की है। बिना किसी खाद्य पृष्ठभूमि वाले एक प्रबंधन स्नातक ने सेलफ्रॉस्ट को शून्य से खड़ा किया, उसे वैश्विक स्तर पर फैलाया और अंततः दुनिया की सबसे बड़ी फूड-सर्विस कंपनियों में से एक, मिडिलबाय कॉर्प में शामिल हो गए।

उस सफलता से पैसा कमाने के बाद, वह वापस लौटे वो भी पैसे के लिए नहीं, बल्कि एक मकसद के लिए। उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि "हम उन समस्याओं को सुलझाने के लिए वापस आए जिन्हें उद्योग अनदेखा कर रहा था।" उनके लिए पिछले सात सालों से सवाल एक ही हैं, कौन सी समस्याएं वाकई मायने रखती हैं? हम उन्हें सटीकता से कैसे सुलझाएं और जिन लोगों की हम सेवा करते हैं, उनके लिए हमारे ब्रांड का क्या मतलब होना चाहिए।

नतीजा एक ऐसी कंपनी है जो मूल्यांकन के लिए नहीं, बल्कि विरासत के लिए बनाई गई है। भविष्य में एक आईपीओ भी आ सकता है, लेकिन ध्यान कठिन, संरचनात्मक समस्याओं को हल करने पर ही रहेगा। खासकर रेस्टोरेंट, कैफ़े और बेकरी में एकरूपता और गुणवत्ता को लेकर। इसी संदर्भ में उन्होंने आगे कहा "यह केवल तकनीक और एआई के जरिए ही संभव है और हम इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, बहुत ही बारीकी से।" इन सभी रास्तों पर एक बात हमेशा कायम रहती है वो है भारतीय खाद्य उद्योग अब सिर्फ सहज ज्ञान पर आधारित नहीं है, बल्कि यह नवाचार, तकनीक और उद्देश्यपूर्ण पूंजी पर आधारित है।

सेठ के अनुसार सफलता आपको दो बातें सिखाती है, क्या करना है और क्या नहीं करना है!

खाद्य उद्यमियों की इस नई पीढ़ी के लिए एक बात स्पष्ट है, वे मूल्यांकन के लिए निर्माण नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे भविष्य के लिए निर्माण कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, "वे जो कमाते हैं वह कंपनी में वापस जाता है, वे जो बनाते हैं वह अगले दशक के लिए बुनियादी ढांचा बन जाता है। वे एक ऐसे इकोसिस्टम की कल्पना करते हैं जहां भारतीय खाद्य व्यवसाय पहले से कहीं अधिक तेजी से, अधिक कुशलता से और अधिक मजबूती से विकसित हों।"

दृढ़ता, दर्द और सफलता

मैड ओवर डाउट्स के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और सीईओ तारक भट्टाचार्य एक ऐसे सफर का जिक्र करते हैं जो एक शौक और एक अस्वीकृति से शुरू हुआ। उन्होंने बताया “फाउंडर क्रिस्पी क्रीम की फ्रैंचाइजी चाहते थे, लेकिन उन्हें वह नहीं मिली। शायद यह निराशा थी, शायद प्रेरणा।" लेकिन इसी तरह एमओडी का जन्म हुआ।

तारक भट्टाचार्य ने बताया कि संघर्ष के दिनों में मॉल्स ने उन्हें फ्रैंचाइजी देने के लिए नकार दिया था, उन्होंने कहा था कि कोई भी डोनट की दुकान नहीं चल सकती और रोजाना पांच-सात डोनट बेचने से कभी कारोबार नहीं चलेगा। इसके अलावा उन्होंने बताया कि पहली दुकान बंद हो गई, दूसरी संघर्ष कर रही थी, फिर भी उन्होंने तीसरी खोल ली।

उनके लिए ब्रीच कैंडी के आउटलेट ने सब कुछ बदल दिया और "पंद्रह साल पहले MOD ने ₹25 लाख प्रति माह की कमाई की थी, एक ऐसी सफलता जिसने डोनट्स को भारत की रोजमर्रा की जिदगी और त्योहारों की संस्कृति का हिस्सा बना दिया। MOD आज स्टोर और कॉर्पोरेट स्तर पर मुनाफे में है, " उन्होंने गर्व से बताया और आगे कहा कि इसमें नुकसान भी हुआ और सीख भी, लेकिन लोगों ने हमें अपनाया और हम उनके जश्न के साथी बन गए।

एक विरासत का पुनर्निर्माण

द लिटिल इटली ग्रुप के दूसरे-पीढ़ी के अमृत मेहता के लिए यह सफर 1989 में पुणे के एक छोटे से बेसमेंट में शुरू हुआ, जिसकी स्थापना उनके पिता ने की थी, जो एक होटल व्यवसायी थे और जिन्होंने एक इतालवी शेफ के साथ मिलकर काम किया था। ओशो के अनुयायी सात्विक और शाकाहारी भोजन की तलाश में थे, इसलिए इटैलियन व्यंजनों को भारत में खासकर गुजरातियों और मारवाड़ियों के बीच जगह मिली।

अमृत ​​ने कहा "समय के साथ हमें एहसास हुआ कि शाकाहारी इटैलियन खाना सिर्फ हमारा उत्पाद नहीं था, बल्कि यह हमारी पहचान थी।" आज लिटिल इटली 28 आउटलेट्स से बढ़कर 45 हो गया और नए ब्रांड्स के जरिए विस्तार करते हुए अपनी यूएसपी पर अडिग रहा।

आज अमृत ने पियाजा रोमन शैली का खट्टा पिज़्ज़ा (नॉन-वेज क्यूएसआर), सेनोरिटा का मैक्सिकन किचन और टुट्टो बेने एक जेन-जेड लाइफस्टाइल कैफ़े भी लॉन्च किया है। लेकिन सबसे प्रमुख, बहुचर्चित लिटिल इटली ही रहेगा।

नवाचार की लागत और प्रतिफल

अंकुश ने आगे कहा "जब मैं शामिल हुआ तब हमारी बिक्री ₹1 करोड़ और घाटा ₹1 करोड़ था, लेकिन हम पैसा बर्बाद नहीं कर रहे थे, बल्कि हम निवेश कर रहे थे।" इस बुनियादी ढांचे को बनाने में वर्षों लग गए।

एआई-संचालित प्रक्रियाएं, स्केलेबल क्लाउड किचन, एसकेयू तकनीक और मल्टी-ब्रांड सिस्टम अब फल देने लगे हैं। मुनाफा एक सीधी रेखा में नहीं बढ़ा, यह तेज़ी से बढ़ा और उस समय जब मैकडॉनल्ड्स जैसे वैश्विक क्यूएसआर को 100 स्टोर खोलने में एक दशक लग गया था, रेबेल ने वेंडीज को सिर्फ चार सालों में 200 स्टोर खोलने में सक्षम बनाया। 

"अब कोई भी नया ब्रांड तीन महीनों में 400 क्लाउड किचन में लॉन्च किया जा सकता है ऐसा कुछ जिसके लिए आमतौर पर 10 साल लगते हैं," उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा और बताया कि ब्रांड ने ऐसे बुनियादी ढांचे में निवेश किया है जिससे समय की बचत होती है और पैमाने का विस्तार होता है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला, वहीं आज मेरा 20% कारोबार पिछले साल लॉन्च हुए ब्रांड्स से आता है। यही हमारी ताकत है।" 

इसलिए हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि आज के व्यवसाय केवल संख्याओं पर नहीं, बल्कि बदलते उपभोक्ता व्यवहार को समझने, सार्थक भोजन अनुभव तैयार करने और उद्देश्यपूर्ण विस्तार की क्षमता पर आधारित हैं। रेस्टोरेंट जगत में, विकास पूंजी अब केवल विस्तार का ईंधन नहीं है, बल्कि यह अच्छी अवधारणाओं को स्थायी ब्रांडों में बदलने का उत्प्रेरक है।

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