फ़रहान अख़्तर भारतीय मनोरंजन जगत के उन कलाकारों में से हैं जो हर काम में अपना बेस्ट देते हैं चाहे एक्टिंग हो, डायरेक्शन, म्यूज़िक या प्रोडक्शन। लगभग 25 सालों में उन्होंने खुद को कई बार नया रूप दिया है, और हर बार दर्शकों को एक ताज़ा और अलग फ़रहान देखने को मिला।
सपष्ट सोच और सादगी वाले कलाकार
फ़रहान से मिलकर आप महसूस करते हैं कि वह अपने लक्ष्य को बहुत अच्छे से जानते हैं। दिल चाहता है और भाग मिल्खा भाग जैसी दो बिल्कुल अलग फिल्मों में भी उनकी सोच साफ दिखती है—सही कहानी, सही दर्शक। उनकी सबसे बड़ी खूबी है—सादगी और काम के प्रति ईमानदारी।
अनुशासन – उनकी सफलता की चाबी
51 साल की उम्र में भी फ़रहान फिटनेस और मेहनत को जीवन का मंत्र मानते हैं। फ़िल्मी माहौल में बड़े होने के कारण सिनेमा उनके जीवन का हिस्सा रहा है।
वे कहते हैं,“रचनात्मकता और जुनून तभी काम आते हैं जब उनके साथ अनुशासन हो।”
रोज़मर्रा की ज़िंदगी से मिलती है रचनात्मकता
फ़रहान का मानना है कि असली प्रेरणा फिल्मों से बाहर मिलती है यात्राओं से, किताबों से, संगीत से और अपने लोगों के साथ समय बिताने से।
यही अनुभव उन्हें नई सोच और नई कहानियां देते हैं।
किताबें: उनकी सोच को उड़ान देती हैं
वे पढ़ना बहुत पसंद करते हैं और मानते हैं कि एक ही किताब दो लोग पढ़ें, तो भी दोनों की कल्पना अलग होगी। उनके अनुसार, यही पढ़ने की ताकत है—यह दिमाग को हमेशा एक्टिव रखती है।
टीम ही असली ताकत है
फ़रहान मानते हैं कि किसी भी प्रोजेक्ट के लिए सबसे ज़रूरी है सही टीम। "पहला कदम है उन लोगों को साथ रखना जो आपके जितना ही प्रोजेक्ट में विश्वास रखते हों," वे कहते हैं। इसके बाद लीडर होने का मतलब है—हर सवाल का साफ़ जवाब देना।
कला और कमाई – दोनों में संतुलन ज़रूरी
फ़रहान कहते हैं कि फिल्म बनाना हमेशा जोखिम भरा काम है। निर्माता का काम है कहानी और बाज़ार—दोनों का ध्यान रखना। लेकिन वे कभी नकल नहीं करते। उनकी अपनी लाइन है: “अगर सफल या असफल होना है, तो अपनी पसंद पर। किसी की कॉपी पर नहीं।”
‘लक्ष्य’ फिल्म से मिली असली सीख
लद्दाख में 5 महीने की शूटिंग बहुत मुश्किल थी—ठंड, कम नेटवर्क और कई चुनौतियां। लेकिन असली खुशी उन्हें तब मिली जब इंडियन मिलिट्री अकादमी में कई कैडेट्स ने कहा कि लक्ष्य देखकर उन्होंने सेना जॉइन करने का फैसला लिया। फ़रहान कहते हैं, “तब समझ आया कि हर सफलता बॉक्स ऑफिस पर नहीं दिखती।”