भारत का फूड और बेवरेज सेक्टर कई दशकों में सबसे बड़े बदलाव से गुजर रहा है। अब यह सिर्फ अच्छे खाने का बिज़नेस नहीं रह गया, बल्कि ब्रांड्स को उपभोक्ताओं से भावनात्मक जुड़ाव, मजबूत स्केल मॉडल और निवेशकों की पसंद के अनुसार खुद को ढालना पड़ रहा है। निवेशक, QSR फाउंडर्स, पुराने रेस्टोरेंट मालिक और नए जमाने की कैफ़े कम्युनिटी—all मिलकर इस सेक्टर का भविष्य तय कर रहे हैं।
निवेशकों की सोच: कौन बनेगा कैटेगरी लीडर?
भारत एक मार्केट नहीं, एक पूरा महाद्वीप जैसा है—सांस्कृतिक और खाने की विविधता में यूरोप से भी बड़ा। इसलिए निवेशक वही ब्रांड चुनते हैं जो अपने कैटेगरी में टॉप 3 बन सकें।
एंजेल निवेशक हरी बालासुब्रमणियन के अनुसार, निवेशक तीन बातें देखते हैं—क्या ब्रांड लीडर बन सकता है? क्या टीम देशभर में स्केल कर सकती है? और क्या 7–12 साल में अच्छा एग्ज़िट मिलेगा? यही वजह है कि अब निवेश बहुत सोच-समझकर किया जाता है।
COCO मॉडल की वापसी: कंपनी-ओन्ड स्टोर्स
पहले भारत में विस्तार का मतलब था—फ्रैंचाइज़ी। लेकिन अब यह मॉडल धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है। Good Flippin Burgers ने कंपनी-ओन्ड, कंपनी-ऑपरेटेड (COCO) मॉडल चुना। उनके अनुसार, फ्रैंचाइज़ी जल्दी रिटर्न चाहती है और इससे क्वालिटी कम हो सकती है। COCO मॉडल में ब्रांड क्वालिटी और ग्राहक अनुभव को खुद नियंत्रित करता है, जिससे लंबी अवधि का मूल्य बढ़ता है।
FICO मॉडल: फ्रैंचाइज़ी का नया रूप
दरियागंज (Daryaganj) के सीईओ अमित बग्गा कहते हैं कि फ्रैंचाइज़ी खत्म नहीं हो रही, बल्कि बदल रही है।नया मॉडल—FICO (Franchisee-Invested, Company-Operated)—में निवेशक पैसा लगाएगा पर रेस्टोरेंट ब्रांड चलाएगा। इससे क्वालिटी एक जैसी रहती है और ब्रांड स्टैंडर्ड कमजोर नहीं होते।
लेगेसी ब्रांड्स का नया दौर: कहानी बनेगी ताकत
दरियागंज (Daryaganj) जैसे ब्रांड, जो बटर चिकन और दाल मखनी की विरासत से बने हैं, अपनी कहानी को स्केल करने का तरीका बना रहे हैं। उन्होंने 377 से ज़्यादा फ्रैंचाइज़ी रिक्वेस्ट ठुकराई और पहले मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर, इंटरनेशनल सफलता और एक जैसी क्वालिटी पर ध्यान दिया। उनका मानना है—ब्रांड वैल्यू बनाना मुश्किल है, पर खोना बहुत आसान।
कम्युनिटी बनेगी अगली बड़ी ताकत
जहाँ QSR स्केल पर ध्यान दे रहे हैं, वहीं Blondie by Bastian जैसे ब्रांड कम्युनिटी बिल्डिंग में विश्वास रखते हैं। वे फैशन, आर्ट, वेलनेस इवेंट्स आयोजित करते हैं और एक 2000+ मेंबर्स की WhatsApp कम्युनिटी बनाई है, जो मेनू टेस्टिंग से लेकर डिजाइन सुझाव तक देती है। इससे ग्राहक ब्रांड को अपना समझते हैं—जैसे उन्होंने साथ मिलकर इसे बनाया हो।
5 इंद्रियों का अनुभव: सिर्फ खाना नहीं, पूरी फीलिंग
हॉस्पिटैलिटी में अनुभव 5 इंद्रियों से बनता है—
स्वाद, स्पर्श, सुगंध, दृश्य और ध्वनि।
अमित बग्गा इसे "फाइव सेंस एक्सपीरियंस" कहते हैं। कई ब्रांड अच्छा खाना दे सकते हैं, पर जो ब्रांड याद रहता है, वह हमें कैसा अहसास देता है, यही असली फर्क पैदा करता है।
निवेशकों की पसंद: QSR और क्लाउड किचन
निवेशक मानते हैं कि फाइन डाइनिंग स्केल नहीं हो पाती, लेकिन QSR आसानी से पूरे देश में फैल सकता है।
क्लाउड किचन कम खर्च में बड़ी पहुंच देता है और कई ब्रांड एक ही किचन से चल सकते हैं। कई क्लाउड किचन ₹100 करोड़+ महीना कमा रहे हैं—जो फिजिकल रेस्टोरेंट के लिए सालों का सफर होता।
स्केलेबल सिस्टम, न कि सिर्फ स्वादिष्ट खाना
Good Flippin Burgers के अनुसार, भारत में अच्छे प्रोडक्ट की कमी नहीं है—कमी है स्केलेबल सिस्टम की। SOPs, सप्लाई चेन, ट्रेनिंग और मिडिल मैनेजमेंट को मजबूत किए बिना कोई ब्रांड 1 से 100 स्टोर्स नहीं बना सकता। एक मजबूत "हीरो प्रोडक्ट" ब्रांड को यादगार बनाता है, लेकिन स्केल सिस्टम से मिलता है।
कैपिटल रेज़िंग का सफर: हर स्टेज की अलग मांग
निवेश जुटाना एक बार का पिच नहीं, बल्कि कई चरणों की परीक्षा है:
शुरुआती निवेशक → मांग का प्रूफ देखते हैं
मिड स्टेज निवेशक → ऑपरेशन क्षमता देखते हैं
लेट स्टेज निवेशक → मार्केट साइज और स्केल देखते हैं
सभी का एक ही सवाल होता है—क्या यह ब्रांड बहुत बड़ा बन सकता है?
भारत का F&B भविष्य: जो स्थिर रहेगा वही जीतेगा
अगले 10 सालों में भारत का F&B सेक्टर उन ब्रांड्स को आगे बढ़ता देखेगा जो—
सिर्फ क्यूज़ीन नहीं, पूरी कैटेगरी के मालिक बनेंगे
सिर्फ स्टोर नहीं, मजबूत सिस्टम बनाएंगे
सिर्फ मार्केटिंग नहीं, कम्युनिटी बनाएंगे
जल्दबाज़ी नहीं, धैर्य से स्केल करेंगे और सबसे जरूरी—कंसिस्टेंसी बनाए रखेंगे
आज के चैलेंजर्स में से कल के दिग्गज यही होंगे।