रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस सप्ताह नई दिल्ली पहुंच रहे हैं, जहां वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दो दिवसीय शिखर वार्ता में शामिल होंगे। यह दौरा भारत-रूस संबंधों के लिए बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चार साल बाद दो दिन की भारत यात्रा पर दिल्ली आ रहे हैं। यह मुलाकात ऐसे समय हो रही है जब अमेरिकी प्रतिबंधों और भुगतान संकट के कारण भारत की रूस से तेल खरीद तीन साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है, जबकि रूस अब भी भारत का सबसे बड़ा समुद्री कच्चा तेल सप्लायर है और लंबे समय के कॉन्ट्रैक्ट सुरक्षित करना चाहता है।
रूस के बड़े अधिकारियों रोसनेफ्ट, गैज़प्रोमनेफ्ट, स्बेरबैंक और रोसोबोरनएक्सपोर्ट का भारत आना इस बात का संकेत है कि मॉस्को तेल, रक्षा, वित्त और व्यापार में गहरे सहयोग के लिए पूरी ताकत से प्रयासरत है। रूसी तेल पर भारतीय रिफाइनर सावधानी से काम कर रहे हैं—इंडियन ऑयल गैर-प्रतिबंधित स्रोतों से ही खरीद रही है, BPCL नए ऑर्डरों पर बातचीत कर रही है और नायरा एनर्जी लगभग पूरी तरह रूसी तेल पर निर्भर है।
रूस चाहता है कि भारत उसकी तेल खरीद ऊँची रखे, लंबे समय के सप्लाई समझौते करे, नायरा एनर्जी को सपोर्ट दे और रूसी बैंकों में फंसे भारतीय कंपनियों के डिविडेंड का समाधान निकाले। इस बीच भारत की ऊर्जा जरूरतें बदल रही हैं और वह अमेरिकी तेल व LNG पर अधिक निर्भर होते जा रहे है।
वर्ष 2022 के बाद भारत के रूस से तेल आयात में तेज वृद्धि ने व्यापार घाटा भी है और बढ़ाया है। भारत रूस से लगभग $64 अरब का आयात करता है जबकि निर्यात केवल $5 अरब के करीब है। भारत उम्मीद कर रहा है कि EAEU के साथ प्रस्तावित FTA से व्यापार संतुलन सुधरेगा। दूसरी ओर, परमाणु ऊर्जा सहयोग—जैसे कुडनकुलम परियोजना—रिश्ते का सबसे स्थिर क्षेत्र बना हुआ है, जबकि रक्षा साझेदारी अब भी रिश्ते की रीढ़ है, जिसमें Su-57 लड़ाकू विमान, Su-30MKI के स्पेयर और अतिरिक्त S-400 सिस्टम जैसे मुद्दे चर्चा में होंगे।
अमेरिका के साथ व्यापार तनाव भी इस दौरे पर छाया हुआ है, क्योंकि राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में भारतीय उत्पादों पर टैरिफ 50% कर दिया है और इसे भारत की रूसी तेल खरीद से जोड़ा है, जिससे भारत किसी भी नई रूस-संबंधी घोषणा को लेकर सावधान है। दोनों देश रुपया-रूबल भुगतान व्यवस्था और वैकल्पिक वित्तीय तंत्र को मजबूत करने पर काम करेंगे और साथ ही INSTC, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर, दुर्लभ धातुएँ, उर्वरक व खनन तकनीक जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा होगी। यह दौरा भारत को ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा स्पेयर सपोर्ट, न्यूक्लियर सहयोग और वैकल्पिक भुगतान प्रणाली मजबूत करने का अवसर देता है, लेकिन भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह रूस के साथ अपने रिश्ते को मजबूत रखते हुए अमेरिका की नाराज़गी से भी बचा रहे।