भारत का तकनीक से जुड़ाव हमेशा आकांक्षाओं से परिभाषित रहा है। एक नया फोन, लैपटॉप या वियरेबल सिर्फ़ एक गैजेट नहीं रहा, बल्कि यह प्रगति, सामाजिक गतिशीलता और व्यक्तिगत गर्व का प्रतीक रहा है। पिछले एक दशक में, आय बढ़ने और इनोवेशन तेज़ होने के साथ, भारत ने दुनिया के सबसे तेज़ हार्डवेयर अपग्रेड चक्रों में से एक देखा। लेकिन बढ़ती कीमतों, छोटे होते प्रोडक्ट लाइफ-साइकिल, पर्यावरण को लेकर बढ़ती जागरूकता और कचरे से असहजता ने उपभोक्ताओं और ब्रांड्स दोनों को यह सोचने पर मजबूर किया है कि तकनीक तक पहुंच, उसका स्वामित्व और उसका उपयोग किस तरह होना चाहिए। इसी बदलाव के केंद्र में एक प्रभावशाली अवधारणा है, जिसने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को बदल दिया है सर्कुलर कंज़म्प्शन (परिपत्र उपभोग)।
सर्कुलर कंज़म्प्शन अब सिर्फ़ कॉन्फ्रेंस में चर्चा का विषय नहीं रहा। जैसे-जैसे बाज़ार का विस्तार हो रहा है और भारत मैन्युफैक्चरिंग व इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपोर्ट का वैश्विक केंद्र बनने की ओर बढ़ रहा है, सवाल सिर्फ़ यह नहीं रह गया कि भारत क्या बना सकता है। असली सवाल यह है कि ये उत्पाद कितने समय तक उपयोग में बने रहते हैं, कितने उपभोक्ताओं तक पहुंचते हैं और अपने पूरे जीवनचक्र में कितनी कुशलता से मूल्य पैदा करते हैं। यहीं से भारत की टेक इकॉनमी का अगला चरण आकार ले रहा है।
भारत की टेक भूख अब लीनियर मॉडल से आगे बढ़ चुकी है
कई वर्षों तक भारत ने एक लीनियर कंज़म्प्शन मॉडल अपनाया—उपभोक्ता डिवाइस खरीदता है, कुछ साल उसका उपयोग करता है और फिर उसे छोड़ देता है। जब डिवाइस महंगे और कम बार खरीदे जाने वाले लग्ज़री आइटम थे, तब यह मॉडल कारगर था। लेकिन आज बाज़ार की तस्वीर बदल चुकी है। हर तिमाही नए प्रोडक्ट लॉन्च होते हैं, सॉफ्टवेयर अपडेट्स के लिए ज़्यादा पावरफुल हार्डवेयर चाहिए और बेहतर कैमरा, तेज़ प्रोसेसर व उन्नत फीचर्स की मांग लगातार बढ़ रही है।
यहां तक कि स्टेटस को लेकर सजग उपभोक्ता भी अब बढ़ती शुरुआती लागत का बोझ महसूस करने लगे हैं। भारत में हाई-एंड स्मार्टफोन की औसत कीमत पिछले पांच सालों में लगभग दोगुनी हो चुकी है, जिससे अपग्रेड करना कई लोगों के लिए आर्थिक रूप से तनावपूर्ण हो गया है। दूसरी ओर, ब्रांड्स भी चुनौती महसूस कर रहे हैं—धीमी रिप्लेसमेंट साइकिल उनके विकास पर असर डाल रही है।
यहीं सर्कुलर कंज़म्प्शन एक व्यावहारिक और स्केलेबल समाधान के रूप में सामने आता है। एक ही प्रोडक्ट को उसके जीवनकाल में कई उपभोक्ताओं तक पहुंचाकर यह मॉडल सुनिश्चित करता है कि मूल्य एक बार की बिक्री के बाद रुकने के बजाय लगातार सिस्टम में घूमता रहे।
उपभोक्ता सोच में बदलाव का संकेत
भारत में यह बदलाव केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मानसिक भी है। आधुनिक भारतीय उपभोक्ता धीरे-धीरे स्थायी स्वामित्व को व्यक्तिगत मूल्य से अलग कर रहा है। जैसे लोग कभी सीडी और डीवीडी खरीदते थे और अब स्ट्रीमिंग को अपनाते हैं, वैसे ही वे यह स्वीकार कर रहे हैं कि किसी डिवाइस की उपयोगिता, उसे हमेशा के लिए रखने से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो सकती है।
प्रीमियम तकनीक तक सब्सक्रिप्शन आधारित पहुंच तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है क्योंकि यह लचीलापन देती है। फ्रीलांसर, छात्र, कंटेंट क्रिएटर्स और वर्किंग प्रोफेशनल्स अपनी ज़रूरत के हिसाब से अपग्रेड कर सकते हैं, कम इस्तेमाल के दौर में स्केल डाउन कर सकते हैं और पुराने डिवाइस बेचने से होने वाले मूल्यह्रास से बच सकते हैं।
जब कोई यूज़र 6–12 महीने उपयोग के बाद डिवाइस लौटाता है, तो वह प्रोफेशनल रिफर्बिशमेंट प्रक्रिया से गुजरता है और फिर अगले उपभोक्ता के लिए बाज़ार में वापस आ जाता है। यह चक्र कई बार दोहराया जा सकता है, जिससे अनावश्यक कचरा कम होता है और हर डिवाइस का पर्यावरणीय प्रभाव घटता है।
एक नई वैल्यू चेन आकार ले रही है
सर्कुलर कंज़म्प्शन केवल रिफर्बिश्ड फोन बेचने तक सीमित नहीं है। यह एक पूरी नई वैल्यू चेन बना रहा है—जिसमें रिफर्बिशमेंट, डायग्नोस्टिक्स, लॉजिस्टिक्स, क्वालिटी कंट्रोल, रीसाइक्लिंग, रिवर्स कॉमर्स और सब्सक्रिप्शन आधारित एक्सेस शामिल हैं। इन क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियां भारत की डिजिटल इकॉनमी के अहम स्तंभ बनती जा रही हैं।
रिफर्बिशमेंट व्यवसाय छोटे रिपेयर शॉप्स से आगे बढ़कर हाई-एंड टेस्टिंग और क्वालिटी रेटिंग सिस्टम वाले आधुनिक केंद्रों में बदल चुके हैं। रिवर्स लॉजिस्टिक्स कंपनियां नॉन-मेट्रो शहरों तक आसान पिकअप और रिटर्न सिस्टम बना रही हैं। सब्सक्रिप्शन प्लेटफॉर्म्स रियल-टाइम डेटा से डिमांड साइकल, डिवाइस उपयोग और रेज़िडुअल वैल्यू ट्रैक कर रहे हैं। इससे नौकरियां पैदा हो रही हैं, कचरा घट रहा है और बार-बार कमाई के नए मौके बन रहे हैं—जो एक स्केलेबल सर्कुलर टेक इकोसिस्टम की नींव रखता है।
भारत के लिए आर्थिक रूप से समझदारी भरा मॉडल
भारत हमेशा से मौजूदा संसाधनों का अधिकतम मूल्य निकालने में माहिर रहा है, और सर्कुलर कंज़म्प्शन इसी सोच के अनुरूप है। यह उपभोक्ताओं को भारी रकम एक साथ खर्च किए बिना हाई-एंड टेक तक पहुंच देता है। जब एक डिवाइस कई यूज़र्स के पास जाता है, तो वह सिर्फ़ अपनी उम्र नहीं बढ़ाता, बल्कि सिस्टम में नया मूल्य जोड़ता रहता है।
बिज़नेस के लिए भी इसके फायदे स्पष्ट हैं। आसान अपग्रेड विकल्प होने से उपभोक्ता डिवाइस को लंबे समय तक नहीं रोकते, जिससे ब्रांड्स की एक्विज़िशन कॉस्ट घटती है। रिन्यूअल्स, रिफर्बिश्ड सेल्स और बायबैक से रेवेन्यू अधिक स्थिर होता है। साथ ही, उपभोक्ता लचीले इकोसिस्टम में बने रहते हैं, जिससे ब्रांड लॉयल्टी बढ़ती है। इन्वेंट्री भी ज़्यादा प्रभावी बनती है—डिवाइस बेकार नहीं जाते, बल्कि दोबारा तैयार होकर फिर से कमाई करते हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता
इलेक्ट्रॉनिक्स बनाना संसाधन-गहन प्रक्रिया है, जिसमें धातुएं, दुर्लभ खनिज, पानी और ऊर्जा की बड़ी खपत होती है। हर नया डिवाइस स्टोर तक पहुंचने से पहले ही पर्यावरण पर भारी असर डालता है।
सर्कुलर कंज़म्प्शन इस बोझ को कम करता है। नए डिवाइस बनाने की ज़रूरत घटती है, उत्सर्जन कम होता है और कम गैजेट्स लैंडफिल तक पहुंचते हैं। यह डिवाइस को असुरक्षित अनौपचारिक रीसाइक्लिंग के बजाय संगठित चैनलों की ओर भी ले जाता है—जो भारत के लिए संतुलित और टिकाऊ रास्ता है।
भरोसा ही मुख्य कुंजी
इस मॉडल की सफलता के लिए भरोसा सबसे अहम है। लंबे समय तक ‘रिफर्बिश्ड’ शब्द को लोग खराब गुणवत्ता से जोड़ते रहे। लेकिन आज प्रोफेशनल रिफर्बिशमेंट, वारंटी, स्टैंडर्ड ग्रेडिंग और पारदर्शी जांच ने इस धारणा को बदल दिया है। सब्सक्रिप्शन मॉडल्स ने भरोसा और मजबूत किया है—यूज़र जानते हैं कि संतुष्टि न होने पर वे डिवाइस लौटा सकते हैं। जैसे-जैसे भरोसा बढ़ेगा, सर्कुलर कंज़म्प्शन मुख्यधारा बनता जाएगा।
स्मार्ट सर्कुलेशन पर आधारित भविष्य
भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। टेक की मांग बढ़ती जाएगी और मैन्युफैक्चरिंग लीडर बनने की महत्वाकांक्षा भी। चुनौती है—बिना लागत और पर्यावरणीय नुकसान बढ़ाए आगे बढ़ना। सर्कुलर कंज़म्प्शन इसका रास्ता दिखाता है।
अगर भारत डिजिटल पेमेंट्स और टेलीकॉम की तरह सर्कुलर टेक इकोसिस्टम बना पाता है, तो वह वैश्विक उदाहरण बन सकता है—जहां तकनीक तक पहुंच बढ़े, लेकिन कचरा न बढ़े। यह उपभोक्ताओं को लचीलापन देगा, बिज़नेस को मज़बूती देगा और पर्यावरण की रक्षा करेगा।
भारत की टेक इंडस्ट्री अब अगली छलांग की तैयारी में है। यह छलांग सिर्फ़ तेज़ चिप्स या बेहतर कैमरों से नहीं, बल्कि ज़्यादा समझदार उपभोग और कुशल सर्कुलेशन से तय होगी। अगर भारत इसे पूरी तरह अपनाता है, तो वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रगतिशील, न्यायसंगत और टिकाऊ टेक अर्थव्यवस्था बना सकता है।
(जयंत झा बाइटपे (BytePe) के संस्थापक हैं। यह उनके निजी विचार है।)