भारत का लॉजिस्टिक्स सेक्टर: हरित और स्मार्ट बदलाव की ओर

भारत का लॉजिस्टिक्स सेक्टर: हरित और स्मार्ट बदलाव की ओर

भारत का लॉजिस्टिक्स सेक्टर: हरित और स्मार्ट बदलाव की ओर
भारत का लॉजिस्टिक्स सेक्टर तेज़ी से बढ़ते फ्रेट और निर्यात के साथ तकनीक और ई-मोबिलिटी को अपनाकर ज्यादा कुशल और पर्यावरण-अनुकूल बन रहा है।

भारत का लॉजिस्टिक्स सेक्टर अब एक बड़े बदलाव के दौर में है, जहां विकास के साथ-साथ पर्यावरण का ध्यान रखना भी जरूरी हो गया है। देश में मैन्युफैक्चरिंग, खपत और निर्यात बढ़ने से माल ढुलाई तेज़ी से बढ़ रही है। इसी वजह से ऐसे लॉजिस्टिक्स सिस्टम की जरूरत है जो तेज़, सस्ता और भविष्य के लिए तैयार हो।

आज सड़क, रेल, हवाई और तटीय लॉजिस्टिक्स को मिलाकर भारत का लॉजिस्टिक्स बाज़ार बहुत बड़ा हो चुका है और आने वाले वर्षों में इसके और बढ़ने की उम्मीद है। सरकार की नीतियां, नई तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास इस ग्रोथ को आगे बढ़ा रहे हैं।

भारत में ज़्यादातर माल लंबी दूरी तक सड़कों के जरिए पहुंचाया जाता है। लेकिन यहां एक बड़ी चुनौती यह है कि अधिकतर ट्रक मालिक छोटे हैं, जिनके पास सिर्फ एक या दो गाड़ियां होती हैं। ऐसे लोग लोड और काम पाने के लिए बिचौलियों पर निर्भर रहते हैं।

सड़क परिवहन ज़्यादा होने की वजह से प्रदूषण कम करने का दबाव भी बढ़ रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना इसका एक अच्छा समाधान है, लेकिन पूरे बेड़े को इलेक्ट्रिक बनाना आसान नहीं है। बड़े शहरों में चार्जिंग स्टेशन बढ़ रहे हैं, लेकिन छोटे शहरों और गांवों में अभी भी इनकी कमी है। भारी ट्रकों में बैटरी चार्जिंग और भरोसेमंद परफॉर्मेंस भी एक चुनौती बनी हुई है।

इसके बावजूद, बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। बड़े शहरों में छोटी दूरी पर चलने वाले इलेक्ट्रिक कमर्शियल वाहन अच्छा परफॉरमेंस  दिखा रहे हैं और खर्च भी कम कर रहे हैं।

CJ Darcl जैसी लॉजिस्टिक्स कंपनियां इस बदलाव को धीरे-धीरे अपना रही हैं। कंपनी शहरों के अंदर इलेक्ट्रिक वाहनों का ट्रायल कर रही है और यह देख रही है कि चार्जिंग, समय और लागत के हिसाब से ये कितने कारगर हैं। लंबी दूरी के लिए कंपनी LNG जैसे वैकल्पिक ईंधन वाले वाहनों पर भी काम कर रही है। साथ ही पुराने प्रदूषणकारी वाहनों की जगह नए और साफ-सुथरे वाहन शामिल किए जा रहे हैं।

नई तकनीक भी इस सफर को आसान बना रही है। आज टेलीमैटिक्स और डिजिटल सिस्टम से गाड़ियों की रूटिंग, ईंधन, रुकने का समय और ड्राइविंग पर नज़र रखी जा सकती है। इससे खर्च कम होता है और काम ज़्यादा सुरक्षित बनता है। ड्राइवर की थकान और सड़क सुरक्षा पर भी खास ध्यान दिया जा रहा है।

कंपनियां अब अपने कार्बन उत्सर्जन का सही डेटा इकट्ठा कर रही हैं और उसे कम करने की योजना बना रही हैं। इससे ग्राहकों को भी यह भरोसा मिलता है कि उनकी सप्लाई चेन पर्यावरण के लिए जिम्मेदार है।

वेयरहाउस और डिलीवरी सिस्टम में ऑटोमेशन और बेहतर प्लानिंग से काम तेज़ हुआ है और संसाधनों की बर्बादी कम हुई है। साथ ही, जहां संभव हो वहां माल को रेल और समुद्री रास्तों से भेजा जा रहा है, जो सड़क के मुकाबले कम प्रदूषण करते हैं।

हालांकि, चुनौतियां अभी भी हैं। छोटे ट्रक मालिकों के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों की फाइनेंसिंग आसान नहीं है। फिर भी अच्छी खबर यह है कि नए इलेक्ट्रिक ट्रक, ईवी हाईवे, ऊर्जा कंपनियों के साथ साझेदारी और नए लोन मॉडल सामने आ रहे हैं।

ग्राहक भी अब सिर्फ समय पर डिलीवरी ही नहीं, बल्कि यह भी जानना चाहते हैं कि उनके सामान से कितना प्रदूषण हो रहा है। ऐसे में मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट और साफ तकनीक का इस्तेमाल ज़रूरी होता जा रहा है।

कुल मिलाकर, भारत का लॉजिस्टिक्स सेक्टर धीरे-धीरे एक ऐसे रास्ते पर बढ़ रहा है जहां विकास और पर्यावरण दोनों साथ चलें। यह बदलाव एक दिन में नहीं होगा, लेकिन सही इंफ्रास्ट्रक्चर, तकनीक और निवेश से आने वाले वर्षों में एक मज़बूत और साफ-सुथरा फ्रेट सिस्टम तैयार किया जा सकता है।

(निखिल अग्रवाल सीजे डार्कल लॉजिस्टिक्स लिमिटेड(CJ Darcl logistics Limited ) के प्रेसिडेंट हैं। यह उनके निजी विचार है।)

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