डी2सी  ब्रांड्स कैसे बदल रहे हैं हेयरकेयर की तस्वीर

डी2सी  ब्रांड्स कैसे बदल रहे हैं हेयरकेयर की तस्वीर

डी2सी  ब्रांड्स कैसे बदल रहे हैं हेयरकेयर की तस्वीर
भारत के हेयरकेयर बाज़ार में उपभोक्ता अब क्विक फिक्स से हटकर समस्या-आधारित और रूटीन-लेड समाधानों को अपना रहे हैं। इस बदलाव में D2C ब्रांड्स शिक्षा, पर्सनलाइज़ेशन और आदत-आधारित मॉडल के ज़रिए ग्रोथ और लॉयल्टी बना रहे हैं।

भारत के हेयरकेयर बाज़ार में एक गहरा बदलाव चल रहा है, जो न केवल उपभोक्ताओं की पसंद को बल्कि नए दौर के ब्रांड्स के इस कैटेगरी को बनाने के तरीके को भी बदल रहा है। करीब 4 अरब डॉलर के इस बाज़ार में, जिस पर लंबे समय से FMCG कंपनियों का दबदबा रहा है, अब D2C ब्रांड्स शिक्षा, डायग्नॉस्टिक्स और रूटीन-आधारित प्रोडक्ट्स के ज़रिए ग्रोथ को आगे बढ़ा रहे हैं। जैसे-जैसे उपभोक्ता मास शैंपू और हेयर ऑयल से आगे बढ़कर समस्या-विशेष समाधानों की ओर जा रहे हैं, हेयरकेयर एक आदत-आधारित कैटेगरी में बदल रही है, जिसमें रीपीट यूसेज ज़्यादा, मांग अधिक अनुमानित और धीरे-धीरे प्रीमियमाइज़ेशन देखने को मिल रहा है।

हालांकि पारंपरिक ब्रांड्स अब भी वॉल्यूम पर नियंत्रण रखते हैं, लेकिन ग्रोथ और इनोवेशन तेजी से उन स्पेशलाइज़्ड प्लेयर्स से आ रहे हैं, जो पहुंच के बजाय गहराई पर काम कर रहे हैं। भारत के 31 अरब डॉलर के ब्यूटी और पर्सनल केयर बाज़ार में हेयरकेयर उन सेगमेंट्स में से एक है, जहां व्यवहार में सबसे बड़ा बदलाव आया है। यह अब इम्पल्स खरीद से कम और समस्या–समाधान की सोच व रीपीट यूसेज से ज़्यादा संचालित हो रहा है।

पूरे सेक्टर में फाउंडर्स पिछले 12 से 18 महीनों में एक साफ़ बदलाव की ओर इशारा कर रहे हैं। उपभोक्ता अब सिर्फ “गुड हेयर डे” के लिए शॉपिंग नहीं कर रहे, बल्कि नतीजों के लिए खरीद रहे हैं।

फिक्स माय कर्ल्स की फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर अंशिता मेहरोत्रा कहती हैं, “कैटेगरी लेवल पर हम जिज्ञासा से प्रतिबद्धता की ओर शिफ्ट देख रहे हैं। ग्राहक अब एक-बार इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्ट्स से प्रयोग नहीं कर रहे, बल्कि तीन से चार स्टेप की रूटीन बना रहे हैं और उन्हीं SKUs को लगातार दोबारा खरीद रहे हैं।”

प्रोडक्ट एक्सपेरिमेंटेशन से रूटीन अपनाने की यह यात्रा कैटेगरी के सबसे बड़े बदलावों में से एक रही है। कर्ल-फर्स्ट ब्रांड्स इसके शुरुआती लाभार्थी रहे। भारत का कर्ली और टेक्सचर्ड हेयरकेयर सेगमेंट 2020 से 2024 के बीच अनुमानित 27 प्रतिशत CAGR से बढ़ा, जो ट्रेंड साइकल्स के बजाय स्पेसिफिसिटी और एजुकेशन से प्रेरित था।

इसी तरह का व्यवहार अब अन्य समस्याओं में भी दिख रहा है। अराटा के को-फाउंडर्स ध्रुव मधोक और ध्रुव भसीन हेयरकेयर के “स्किनिफिकेशन” की ओर इशारा करते हैं। वे कहते हैं, “ग्राहक अब सीरम, टॉनिक, मास्क और लीव-इन जैसे नए फॉर्मैट्स अपना रहे हैं। हालांकि वेवी-कर्ली सेगमेंट में हमारी मज़बूत पकड़ है, लेकिन हमारा सबसे बड़ा रेवेन्यू और रीपीट डिमांड हेयर फॉल और डैंड्रफ जैसी समस्याओं से आता है।” मूल बदलाव जनरल क्लेंज़िंग से लक्षित समस्या-समाधान की ओर है।

हेयरकेयर बन रही है आदत

यह व्यवहारिक बदलाव हेयरकेयर बिज़नेस के निर्माण के तरीके को बदल रहा है। पारंपरिक FMCG मॉडल स्केल और मास फ्रीक्वेंसी पर निर्भर रहते हैं। वहीं, नए दौर के ब्रांड्स आदत के ज़रिए फ्रीक्वेंसी बना रहे हैं।

रूटीन-आधारित मॉडल यह भी बदल रहे हैं कि उपभोक्ता वैल्यू को कैसे देखते हैं। फिक्स माय कर्ल्स में मेहरोत्रा बताती हैं कि अब ध्यान एक बोतल की कीमत पर नहीं है। “₹1,200 में चार-स्टेप की रूटीन तब एक आरामदायक स्वीट स्पॉट बन जाती है, जब ग्राहक समझते हैं कि वे एक पूरा कर्ल सॉल्यूशन खरीद रहे हैं। मायने यह रखता है कि प्रति स्टेप वैल्यू क्या है, न कि प्रति प्रोडक्ट कीमत,” वह कहती हैं।

मल्टी-स्टेप रूटीन के रूप में प्रोडक्ट्स को बंडल करने से ब्रांड्स को एवरेज ऑर्डर वैल्यू बढ़ाने और रीपीट रेट सुधारने में मदद मिली है। इंडस्ट्री बेंचमार्क्स के मुताबिक, जहां ब्यूटी कैटेगरी में आमतौर पर रीपीट परचेज़ रेट करीब 26 प्रतिशत होता है, वहीं एजुकेशन और रूटीन-आधारित मॉडल इसे 40 प्रतिशत से भी ऊपर ले जा सकते हैं, खासकर जब रिप्लेनिशमेंट साइकिल या सब्सक्रिप्शन जोड़े जाएं।

उपभोक्ताओं के लिए रूटीन ट्रायल-एंड-एरर की थकान कम करती है। ब्रांड्स के लिए यह प्रेडिक्टेबिलिटी और लंबी कस्टमर लाइफटाइम बनाती है।

एजुकेशन बन रही है डिस्कवरी और भरोसे की कुंजी

FMCG प्लेबुक से सबसे बड़ा अंतर कंटेंट की भूमिका में दिखता है। नए दौर के हेयरकेयर ब्रांड्स के लिए एजुकेशन अब बिज़नेस का केंद्र बन चुकी है।

मेहरोत्रा कहती हैं, “आज जीतने वाले ब्रांड कंटेंट को प्रोडक्ट की तरह ट्रीट करते हैं, न कि सिर्फ मार्केटिंग ऐड-ऑन की तरह।” इंग्रीडिएंट एक्सप्लेनर, रूटीन ब्रेकडाउन, क्विज़ और कम्युनिटी-आधारित एजुकेशन अब उस भूमिका को निभा रहे हैं, जो पहले मास एडवरटाइजिंग या इन-स्टोर प्रमोटर्स निभाते थे।

त्राया की को-फाउंडर सलोनी आनंद इसे लंबे समय से बढ़ा-चढ़ाकर किए गए वादों से प्रभावित इस कैटेगरी में ज़रूरी बदलाव मानती हैं। वह कहती हैं, “आज उपभोक्ता समझते हैं कि हेयर रिग्रोथ में दिन नहीं, महीनों लगते हैं। भुगतान करने की इच्छा इस बात से प्रभावित होती है कि बाल झड़ने की वजह क्या है, समाधान जड़ों पर कैसे काम करता है और अनुशासन वास्तव में कैसा दिखता है।”

त्राया में डायग्नॉस्टिक्स-आधारित एजुकेशन मॉडल का केंद्र है। हेयर लॉस को कॉस्मेटिक समस्या नहीं, बल्कि पोषण, तनाव और हार्मोन जैसे आंतरिक स्वास्थ्य कारकों का परिणाम बताया जाता है। इससे उपभोक्ता क्विक फिक्स से हटकर लंबे समय की, कोच-गाइडेड रेजीम की ओर बढ़े हैं, जिससे रिटेंशन और लाइफटाइम वैल्यू मज़बूत हुई है।

ओन्ड मीडिया भी एक्विज़िशन इकनॉमिक्स को प्रभावित करता है। आनंद बताती हैं कि रील्स, पॉडकास्ट और कम्युनिटी प्लेटफॉर्म्स कन्वर्ज़न से पहले यूज़र्स को शिक्षित करते हैं, जिससे कस्टमर एक्विज़िशन कॉस्ट कम और मार्केटिंग एफिशिएंसी बेहतर होती है।

पर्सनलाइज़ेशन बन रहा है ग्रोथ ड्राइवर

एजुकेशन के साथ-साथ पर्सनलाइज़ेशन अब सपोर्टिंग फीचर से आगे बढ़कर कन्वर्ज़न और भरोसे का मुख्य ड्राइवर बन गया है। इसका मतलब हमेशा कस्टम फॉर्मुलेशन नहीं होता; अक्सर यह डायग्नॉस्टिक क्विज़, गाइडेड रूटीन या एक्सपर्ट कंसल्टेशन के रूप में सामने आता है।

मेहरोत्रा कहती हैं, “ज़्यादातर उपभोक्ताओं को अपने कर्ल पैटर्न, पोरोसिटी या मुख्य समस्या की सही जानकारी नहीं होती। पर्सनलाइज़ेशन भ्रम को कम करता है और निरंतरता बढ़ाता है।”

अराटा पर्सनलाइज़ेशन को रूटीन लेवल पर लागू करता है, जहां उपभोक्ता स्टैंडर्ड प्रोडक्ट रेंज से अपने कॉम्बिनेशन बना सकते हैं। त्राया इससे आगे जाकर डायग्नॉस्टिक्स के ज़रिए ट्रीटमेंट प्लान और कंटेंट गाइड करता है, खासकर हेयर फॉल में, जहां कारण व्यक्ति-विशेष पर निर्भर करते हैं। फाउंडर्स का कहना है कि इन तरीकों से प्रासंगिकता, अनुशासन और लॉन्ग-टर्म रिटेंशन बेहतर होता है।

पूंजी हो रही है अधिक चयनात्मक

निवेशकों का व्यवहार भी इस परिपक्व होते बाज़ार को दर्शाता है। ट्रैक्शन के अनुसार, भारत का D2C हेयरकेयर इकोसिस्टम तेज़ विस्तार से निकलकर अब अधिक अनुशासन की ओर बढ़ चुका है। 2020 से 2022 के बीच महामारी-प्रेरित सेल्फ-केयर और ई-कॉमर्स ग्रोथ के चलते नए ब्रांड्स की संख्या तेज़ी से बढ़ी। 2023 के बाद से, डिफरेंशिएशन और सस्टेनेबिलिटी के महत्व के साथ रफ्तार धीमी हुई।

D2C हेयरकेयर स्टार्टअप्स अब तक कुल 76.1 मिलियन डॉलर जुटा चुके हैं। फंडिंग 2024 में 22.3 मिलियन डॉलर के शिखर पर पहुंची, जिसके बाद चयनात्मकता बढ़ी। वॉल्यूम-आधारित ग्रोथ के बजाय अब पूंजी उन ब्रांड्स को सपोर्ट कर रही है, जिनकी पोज़िशनिंग फोकस्ड और यूज़ केस डिफेंसिबल हैं।

ट्रैक्शन की को-फाउंडर नेहा सिंह कहती हैं, “हम breadth की बजाय depth की ओर शिफ्ट देख रहे हैं। स्पेशलाइज़्ड हेयरकेयर ब्रांड्स आमतौर पर बेहतर रेज़िलिएंस और कैपिटल एफिशिएंसी दिखाते हैं, क्योंकि उनकी प्रासंगिकता अधिक स्पष्ट होती है।”

सिंह के मुताबिक, मास ब्रांड्स अब भी वॉल्यूम पर हावी हैं, जिससे पता चलता है कि प्रीमियमाइज़ेशन फिलहाल चयनात्मक ही है। लेकिन पूंजी और इनोवेशन की दिशा साफ़ है।

FMCG के लिए चुनौती

लीगेसी FMCG प्लेयर्स निच सेगमेंट्स में उतरकर और साइंस-लेड भाषा अपनाकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। फिर भी, कुछ संरचनात्मक सीमाएं बनी हुई हैं। कम्युनिटी-आधारित भरोसा, गहरी डायग्नॉस्टिक्स और एजुकेशन-हेवी मॉडल्स को बड़े पैमाने पर दोहराना आसान नहीं है।

ऑफलाइन विस्तार भी जोखिम लेकर आता है। फिक्स माय कर्ल्स डिजिटल-फर्स्ट बना हुआ है, क्योंकि काउंटर पर एकसमान एजुकेशन न होने से गलत संचार का खतरा रहता है। त्राया ने ऑनलाइन भरोसा स्थापित करने के बाद हाइब्रिड अप्रोच अपनाई है, जहां डिजिटल डायग्नॉस्टिक्स को मानवीय विशेषज्ञता के साथ जोड़ने वाले एक्सपीरिएंशल सेंटर्स खोले गए हैं।

जैसे-जैसे बाज़ार परिपक्व हो रहा है, ग्रोथ कम लॉन्चेस से और ज़्यादा विश्वसनीयता व नतीजों से आएगी। हेयरकेयर अब एक लो-इनवॉल्वमेंट FMCG कैटेगरी नहीं रही। यह रूटीन-आधारित, आउटकम-ड्रिवन और पर्सनल होती जा रही है। यही बदलाव तय करेगा कि लंबे समय की ग्रोथ और लॉयल्टी बाज़ार में कहां टिकेगी।

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