भारत में कॉफी प्रेमियों की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। अब वे केवल स्वाद की तलाश में नहीं हैं, बल्कि यह जानना चाहते हैं कि उनकी कॉफी कहाँ से आई, किस तरह रोस्ट की गई और इसका स्वाद क्यों अलग है। नई कैफे संस्कृति में पारदर्शिता, ट्रेसिबिलिटी और जिम्मेदार उत्पादन को महत्व दिया जा रहा है।
भारत का बाहरी कॉफी बाजार 2028 तक 2.6–3.2 बिलियन USD तक पहुंचने का अनुमान है, जबकि स्पेशलिटी कॉफी सेगमेंट 2024 में 2.94 बिलियन USD का था। मिलेनियल्स और Gen Z उपभोक्ता अब कॉफी के स्रोत, उत्पादन की नैतिकता और बीन्स की उत्पत्ति के प्रति सजग हो रहे हैं।
कैफे और ब्रांड अब अपने उत्पादों को उत्पत्ति के आधार पर पेश कर रहे हैं। ब्लू टोके, अराकू कॉफी, थर्ड वेव कॉफी जैसी कंपनियां पारदर्शी सोर्सिंग पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। Starbucks India और Bacha Coffee जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी अब अपने चयन में उत्पत्ति को प्रमुख बना रही हैं।
कॉफी का रोस्टिंग और ब्रूइंग अब स्वाद और गुणवत्ता के साथ-साथ कैफे की विश्वसनीयता का भी आधार बन गया है। अधिकांश भारतीय उपभोक्ता लट्टे और कैप्पुचिनो के माध्यम से कॉफी का अनुभव करते हैं, इसलिए रोस्ट प्रोफाइल और ब्रूइंग विधियां स्थिर और ग्राहकों के अनुकूल होनी चाहिए।
सस्टेनेबिलिटी अब केवल ब्रांडिंग का हिस्सा नहीं बल्कि ग्राहक निर्णय में अहम भूमिका निभाती है। कॉफी की कीमत में वृद्धि इसलिए भी होती है कि किसान को उचित भुगतान किया गया हो। उपभोक्ता अब सिर्फ पेय नहीं खरीद रहे, बल्कि एक पूरी यात्रा का अनुभव खरीद रहे हैं जिसमें वे विश्वास रखते हैं।
भारत की कॉफी उद्योग अब केवल स्वाद पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर रही है। जानकारी, उद्देश्य और पहचान के साथ उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकताएं इस उद्योग की अगली वृद्धि को गति देंगी।