इस सप्ताह की शुरुआत में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत अब डेटा सेंटर्स के लिए एक पसंदीदा डेस्टिनेशन बन चुका है, क्योंकि देश के पास आवश्यक बुनियादी ढांचा—खासतौर पर बिजली—उपलब्ध है। वह भारत के राष्ट्रीय बिजली ग्रिड की बात कर रहे थे, जो हाल ही में 500 गीगावॉट (GW) से अधिक की कुल स्थापित बिजली क्षमता पार कर चुका है।
गोयल ने कहा, “यूरोप के पास राष्ट्रीय ग्रिड नहीं है। अमेरिका के पास भी राष्ट्रीय ग्रिड नहीं है। लेकिन भारत के पास राष्ट्रीय ग्रिड है। इसलिए हम डेटा सेंटर्स के लिए एक पसंदीदा डेस्टिनेशन हैं। आने वाले वर्षों में इनके विस्तार की योजनाएं हैं और हमारे पास इतनी बिजली होगी कि हम अपने लोगों, किसानों, उद्योगों और व्यावसायिक संस्थानों जिसमें डेटा सेंटर्स और GCCs भी शामिल हैं।”
गोयल के ये बयान ऐसे समय आए हैं जब थाईलैंड और सिंगापुर जैसे अन्य एशियाई देश भी डेटा सेंटर सेक्टर में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, थाईलैंड ने हाल ही में 3.1 अरब अमेरिकी डॉलर के चार डेटा सेंटर प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी है, साथ ही पहले से स्वीकृत परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिए नए कदम भी उठाए हैं।
वहीं सिंगापुर अपनी भरोसेमंद इंफ्रास्ट्रक्चर और मजबूत सब-सी केबल नेटवर्क के चलते एक प्रमुख हब बना हुआ है। KKR और सिंगटेल द्वारा ST टेलीमीडिया ग्लोबल डेटा सेंटर्स के संभावित अधिग्रहण जैसे बड़े सौदे और भारी निवेश इस क्षेत्र में निवेशकों के भरोसे को दर्शाते हैं। इसके अलावा इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे बाजार भी प्रतिस्पर्धा में हैं।
भारत की बात करें तो देश खुद एक विशाल बाजार है और तेज़ डिजिटल परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। 5G की शुरुआत और AI के तेज़ी से बढ़ते उपयोग ने इस बदलाव को गति दी है। उदाहरण के लिए, ओपनएआई के ChatGPT के लिए भारत ट्रैफिक शेयर के हिसाब से दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। वहीं Perplexity AI के लिए भारत अब मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं (MAU) के लिहाज़ से सबसे बड़ा यूज़र बेस बन चुका है।
इस पूरे डिजिटल इकोसिस्टम के केंद्र में डेटा सेंटर्स हैं, जो इस विशाल सूचना प्रवाह को प्रोसेस और मैनेज करते हैं। हालांकि, ये सेंटर्स अत्यधिक ऊर्जा खपत करते हैं और भारत की ऊर्जा नीतियों, नेट-ज़ीरो कार्बन लक्ष्यों, टिकाऊ विकास और डिजिटल संप्रभुता से गहराई से जुड़े हुए हैं। साथ ही, यह एक बड़ा बाजार अवसर भी प्रस्तुत करते हैं।
भारत की डेटा सेंटर क्षमता
सीबीआरई (CBRE) की एक हालिया रिपोर्ट भारत की बढ़ती डेटा सेंटर क्षमताओं का विस्तृत चित्र पेश करती है। रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से सितंबर 2025 (9M 2025) तक भारत की ऑपरेशनल डेटा सेंटर क्षमता लगभग 1,530 मेगावॉट (करीब 2.3 करोड़ वर्ग फुट) तक पहुंच गई, जिसमें इसी अवधि में 260 मेगावॉट की नई सप्लाई जोड़ी गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की लगभग 90% डेटा सेंटर क्षमता मुंबई, चेन्नई, दिल्ली-एनसीआर और बेंगलुरु में केंद्रित है। इसकी वजह कई अंडरसी केबल लैंडिंग स्टेशन, मजबूत फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क, सहायक सरकारी नीतियां और स्थापित वित्तीय इकोसिस्टम हैं।
सीबीआरई (CBRE) के अनुसार, भारत अब एक नए ग्रोथ साइकल में प्रवेश कर रहा है, जिसकी अगुवाई कॉरपोरेट्स और हाइपरस्केलर्स कर रहे हैं। यह विस्तार अब टियर-2 शहरों तक भी पहुंच रहा है।
निवेश की बात करें तो 2019 से 9M 2025 के बीच भारत ने वैश्विक और घरेलू निवेशकों से करीब 94 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश प्रतिबद्धताएं हासिल की हैं। इनमें से लगभग 45% पूंजी तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में गई है।
टेक दिग्गज भी भारत में डेटा सेंटर्स स्थापित करने के लिए आगे आ रहे हैं। हाल ही में गूगल ने अदाणी ग्रुप के साथ मिलकर आंध्र प्रदेश में AI इंफ्रास्ट्रक्चर हब स्थापित करने के लिए 15 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की, जिसमें गीगावॉट-स्तरीय डेटा सेंटर शामिल है।
इससे पहले, अमेज़न (AWS) ने अगले 14 वर्षों में तेलंगाना में 7 अरब डॉलर निवेश की घोषणा की थी। माइक्रोसॉफ्ट ने भी भारत में 17.5 अरब डॉलर निवेश का ऐलान किया है।
अपने डेटा को सुरक्षित रखने की भारत की कोशिश
हाल के दिनों में डेटा संप्रभुता(data sovereignty) एक अहम मुद्दा बनकर उभरा है, जो पहले की डेटा लोकलाइजेशन बहस से काफी मिलता-जुलता है।
माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला ने भारत यात्रा के दौरान कहा, “संप्रभुता (sovereignty) बेहद अहम है क्योंकि हर देश अपने डेटा पर नियंत्रण चाहता है। सवाल यह है कि संप्रभुता और साइबर फ्लेक्सिबिलिटी (रेजिलिएंस) के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।”
गार्टनर के सीनियर प्रिंसिपल एनालिस्ट आशीष बनर्जी के मुताबिक, डेटा संप्रभुता(sovereignty) को केवल “डेटा को भारत में रखने” तक सीमित समझना गलत है। असल ड्राइवर हैं—ऑपरेशनल रेजिलिएंस और AI नेशनलिज़्म।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भारत का बैंकिंग या ऊर्जा ग्रिड डेटा विदेशी सर्वरों पर होगा, तो वह एकतरफा प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति संवेदनशील हो सकता है। स्थानीय डेटा सेंटर्स एक तरह का डिजिटल “फोर्ट नॉक्स” हैं, जो रणनीतिक डेटा को विदेशी अधिकार क्षेत्रों से सुरक्षित रखते हैं।
AI नेशनलिज़्म पर बोलते हुए बनर्जी ने कहा कि भारतीय भाषाओं के बड़े AI मॉडल तब तक कुशलता से प्रशिक्षित नहीं किए जा सकते, जब तक डेटा और कंप्यूट (GPU) एक ही देश में, पास-पास न हों। डेटा मूवमेंट की लागत और लेटेंसी बड़ी बाधा है।
उन्होंने कहा, “डिजिटल अर्थव्यवस्था में मिलीसेकंड्स ही करोड़ों का फर्क पैदा करते हैं। UPI या क्विक कॉमर्स जैसे सेक्टर्स के लिए लेटेंसी सबसे बड़ा बॉटलनेक है।”
आगे की राह
फॉरेस्टर के प्रिंसिपल एनालिस्ट बिस्वजीत महापात्रा के अनुसार, भारत को डेटा सेंटर हब बनने के लिए भरोसेमंद बिजली आपूर्ति, हाई-स्पीड कनेक्टिविटी और कुशल वर्कफोर्स में निवेश करना होगा। साथ ही, भूमि अधिग्रहण को आसान बनाना, टैक्स इंसेंटिव देना और स्पष्ट नियामकीय ढांचा तैयार करना भी जरूरी है।
वहीं आशीष बनर्जी “ग्रीन एंड ब्लू” रणनीति की वकालत करते हैं—जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा (ग्रीन) और सबमरीन कनेक्टिविटी (ब्लू) का लाभ उठाया जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि तटीय शहरों के साथ-साथ हैदराबाद, दिल्ली-एनसीआर, बेंगलुरु और इंदौर जैसे इनलैंड हब्स को भी प्रोत्साहित किया जाए, और टेरेस्ट्रियल फाइबर नेटवर्क को “डिजिटल नेशनल हाईवे” की तरह विकसित किया जाए।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत को केवल सस्ता विकल्प नहीं, बल्कि “ग्रीन डेटा सेंटर लोकेशन” के रूप में खुद को पेश करना चाहिए। 100% नवीकरणीय ऊर्जा आधारित डेटा सेंटर ज़ोन और सर्वर व नेटवर्किंग उपकरणों के स्थानीय निर्माण को बढ़ावा देने वाली PLI योजनाएं भारत को वैश्विक हाइपरस्केलर्स के लिए और आकर्षक बना सकती हैं।
महापात्रा ने भी जोड़ा कि सोलर और विंड एनर्जी के साथ दीर्घकालिक पावर परचेज एग्रीमेंट्स, एनर्जी स्टोरेज और हाइब्रिड मॉडल्स डेटा सेंटर्स को अधिक टिकाऊ, लागत-कुशल और भारत के जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप बना सकते हैं।