नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम वीडियो, जियोहॉटस्टार और भारत में संचालित अन्य स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स को एक बार फिर भारत सरकार ने बच्चों को उम्र के लिहाज से अनुपयुक्त कंटेंट तक पहुंच से रोकने के लिए सख्त एज-गेटिंग (Age-Gating) लागू करने का निर्देश दिया है।
राज्यसभा में पिछले सप्ताह एक प्रश्न के लिखित उत्तर में सूचना एवं प्रसारण तथा संसदीय कार्य राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन ने बताया कि सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत आईटी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम, 2021 को 25 फरवरी 2021 को अधिसूचित किया था।
मंत्री ने कहा कि इन नियमों के भाग-III में ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट (ओटीटी प्लेटफॉर्म्स) के लिए आचार संहिता दी गई है, जिसके तहत किसी भी ऐसे कंटेंट के प्रसारण पर रोक है जो मौजूदा कानून के तहत प्रतिबंधित हो। इसके अलावा, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को कंटेंट को पांच आयु-आधारित श्रेणियों में वर्गीकृत करना अनिवार्य है और बच्चों के लिए अनुपयुक्त कंटेंट को रोकने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय लागू करने होंगे।
आईटी नियमों के अनुसार, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को कंटेंट को U (सभी के लिए), U/A 7+, U/A 13+, U/A 16+ और A (एडल्ट) श्रेणियों में स्वयं वर्गीकृत करना होता है। U/A 13+ और उससे ऊपर रेट किए गए कंटेंट के लिए आयु सत्यापन (Age Verification) और लॉक मैकेनिज़्म जरूरी है, ताकि बच्चे ऐसे कंटेंट तक न पहुंच सकें।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिए व्यावसायिक और तकनीकी चुनौतियां
एज-गेटिंग दुनियाभर की इंटरनेट कंपनियों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। कई देश बच्चों को अनुपयुक्त डिजिटल कंटेंट से दूर रखने के लिए सख्त कदम उठा रहे हैं। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश बना। डेनमार्क, मलेशिया और नॉर्वे जैसे देश भी इसी दिशा में कदम बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं।
भारत में भी जहां सोशल मीडिया पर ध्यान रहा है, वहीं नियामकीय ढांचा अब ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को भी कवर कर रहा है। हालांकि नेटफ्लिक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स बच्चों के लिए अलग प्रोफाइल की सुविधा देते हैं, लेकिन एडल्ट कंटेंट देखने के लिए कोई अनिवार्य मल्टी-स्टेप एज वेरिफिकेशन नहीं होता। थर्ड-पार्टी ऐप्स के जरिए पैरेंटल लॉक संभव है, लेकिन यह व्यापक समाधान नहीं माना जाता।
विशेषज्ञों का मानना है कि इतने जटिल एज-गेटिंग सिस्टम को लागू करना ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिए कठिन है। एक ही घर में कई यूज़र्स होने के कारण केवल स्वैच्छिक आयु घोषणा प्रभावी नहीं होती। भुगतान प्रणाली या सब्सक्राइबर-स्तर पर पहचान सत्यापन भी पूरी तरह सुरक्षित समाधान नहीं है।
प्रसांतो कुमार रॉय, एफटीआई कंसल्टिंग के सीनियर एडवाइज़र, का कहना है कि पैरेंटल कंट्रोल सिस्टम भी अक्सर असफल हो जाते हैं क्योंकि माता-पिता इन्हें ठीक से समझ या लागू नहीं करते, जबकि बच्चे तकनीकी रूप से अधिक सक्षम होते हैं। उन्होंने कहा कि हर दर्शक से जन्मतिथि सत्यापित करवाना व्यावहारिक रूप से असंभव है और पिन आधारित सिस्टम भी सुरक्षित नहीं हैं।
वहीं मीडिया इंडस्ट्री के अनुभवी दर्शन एम का मानना है कि आयु-आधारित कंट्रोल अब विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुका है। उनके अनुसार, यह तकनीक से ज्यादा डिज़ाइन और मंशा का सवाल है। उन्होंने सुझाव दिया कि एडल्ट कंटेंट एक्सेस करते समय अभिभावक के मोबाइल नंबर पर OTP आधारित अनुमति जैसे सरल और कम लागत वाले उपाय अपनाए जा सकते हैं।
बढ़ता ओटीटी बाजार और नियामकीय सख्ती
सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करती है, लेकिन डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर फर्जी, भ्रामक और अनुपयुक्त कंटेंट से जुड़े जोखिमों को लेकर भी सजग है।
Statista के अनुसार, भारत में ओटीटी वीडियो बाजार का राजस्व 2025 तक 4.47 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। वहीं EY रिपोर्ट के मुताबिक, सब्सक्राइबिंग हाउसहोल्ड्स की संख्या 2027 तक 47 मिलियन से बढ़कर 65 मिलियन से अधिक हो जाएगी।
हालांकि, सरकार ने पहले भी अश्लील कंटेंट फैलाने वाले ऐप्स के खिलाफ कार्रवाई की है, जिनमें ULLU, ALTBalaji और Desiflix जैसे प्लेटफॉर्म्स शामिल हैं। EY रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “अश्लीलता” और “भारतीय मूल्यों” की व्याख्या अक्सर व्यक्तिपरक होती है, इसलिए नियामकों को जिम्मेदार कंटेंट उपभोग और रचनात्मक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना होगा।
स्पष्ट है कि गैर-अनुपालन की स्थिति में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मिसालें मौजूद हैं। ऐसे में ओटीटी कंपनियों को तेज़ी से जिम्मेदार डिज़ाइन और स्थानीय नियमों के अनुरूप सिस्टम लागू करने होंगे, ताकि बच्चों की सुरक्षा के साथ-साथ यूज़र अनुभव भी प्रभावित न हो।