हाई-एंड रेस्टोरेंट्स में स्टोरीटेलिंग और डिज़ाइन बनेगा बिज़नेस टूल

हाई-एंड रेस्टोरेंट्स में स्टोरीटेलिंग और डिज़ाइन बनेगा बिज़नेस टूल

हाई-एंड रेस्टोरेंट्स में स्टोरीटेलिंग और डिज़ाइन बनेगा बिज़नेस टूल
भारत में रेस्टोरेंट 2026 तक डिज़ाइन ज़्यादा लक्ज़री और अनुभव पर आधारित होगा, जहाँ सजावट सिर्फ सुंदर नहीं बल्कि खास कहानी भी बताएगी। सस्टेनेबल डिज़ाइन, स्पीकईज़ी बार और नए रेस्टोरेंट ट्रेंड बनेंगे।

भारत में  वर्ष 2026 तक रेस्टोरेंट डिज़ाइन स्पष्ट रूप से हाई-एंड और लक्ज़री-केंद्रित कॉन्सेप्ट्स की ओर बढ़ता दिखेगा, जहाँ कैटेगरी डिफरेंशिएशन पहले से कहीं अधिक स्पष्ट होगा। जैसे-जैसे मिशेलिन जैसी वैश्विक मान्यताओं का भारतीय बाज़ार में महत्व बढ़ेगा, वैसे-वैसे शेफ-ड्रिवन और अनुभव-केंद्रित रेस्टोरेंट्स को और अधिक सोच-समझकर रचे गए, परिष्कृत स्पेशल डिज़ाइन की ज़रूरत होगी। इंडस्ट्री रिपोर्ट्स के अनुसार, लगभग 60% ऑडियंस एंगेजमेंट विज़ुअली आकर्षक डिज़ाइन और रणनीतिक मार्केटिंग से आता है, जिससे यह साफ है कि डिज़ाइन अब केवल सौंदर्य का विषय नहीं, बल्कि एक अहम बिज़नेस टूल बन चुका है।

क्या देखने को मिलेगा

बायोफिलिक डिज़ाइन, ओपन किचन और ट्रांसपेरेंसी, सस्टेनेबिलिटी और लोकलिज़्म, बोल्ड और प्लेफुल एस्थेटिक्स, फ्लेक्सिबल और मल्टी-फंक्शनल स्पेसेज़, वेलनेस-केंद्रित डिज़ाइन, टेक्नोलॉजी इंटीग्रेशन, हेरिटेज और ग्लोबल फ्यूज़न, साथ ही मिनिमलिज़्म और वॉर्म कलर पैलेट्स—ये सभी रेस्टोरेंट डिज़ाइन में तेज़ी से उभरते ट्रेंड्स हैं।

डिज़ाइनर्स ग्रुप के फाउंडर और प्रिंसिपल आर्किटेक्ट खोज़ेमा चितलवाला कहते हैं, “डिज़ाइन में एक्सक्लूसिविटी, प्रिसीजन और क्यूलिनरी आइडेंटिटी के साथ गहरी सामंजस्य झलकेगा, खासकर तब जब इंटरनेशनल शेफ्स और रेस्टोरेंट एक्सटेंशंस भारतीय बाज़ार में प्रवेश करेंगे।”

स्पाइरो स्पेरो के फाउंडर कीथ मेनन के अनुसार, “2026 में रेस्टोरेंट डिज़ाइन मानव-केंद्रित, फ्लेक्सिबल और अनुभव-आधारित स्पेसेज़ की ओर बढ़ेगा। सस्टेनेबिलिटी प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि व्यावहारिक होगी।” उन्होंने आगे बताया कि टिकाऊ मटीरियल्स, एनर्जी एफिशिएंसी और आसान मेंटेनेंस पर ज़्यादा ज़ोर होगा। मॉड्यूलर लेआउट्स, एडैप्टेबल फर्नीचर और लाइटिंग-आधारित ट्रांसफॉर्मेशन से रेस्टोरेंट बिना बड़े स्ट्रक्चरल बदलाव के दिन और रात के फॉर्मैट बदल सकेंगे। “टेक्नोलॉजी को इस तरह इंटीग्रेट किया जाएगा कि वह कम्फर्ट और सर्विस फ्लो बेहतर करे, लेकिन फिज़िकल अनुभव पर हावी न हो,” मेनन ने जोड़ा।

स्पीकईज़ी इफेक्ट

रेस्टोरेंट इंडस्ट्री में एक नया और तेज़ी से उभरता ट्रेंड है स्पीकईज़ी बार्स। इसकी शुरुआत बर्लिन और यूरोप से हुई, जो बाद में न्यूयॉर्क तक पहुँची।इस पर अपनी राय रखते हुए, सुमेश मेनन एंड एसोसिएट्स के फाउंडर सुमेश मेनन कहते हैं, “आफ्टरआवर्स में खुले रहने वाले रेस्टोरेंट और स्पीकईज़ी बार्स अब ट्रेंड में हैं। ये आमतौर पर 50 सीट्स से ज़्यादा नहीं होते, इनमें क्यूरेटेड म्यूज़िक और एक मजबूत कहानी होती है।” उन्होंने यह भी बताया कि लिमिटेड एक्सेस और इनविटेशन-ओनली कॉन्सेप्ट्स वाले ऐसे स्पेसेज़ बड़े शहरों में तेज़ी से लोकप्रिय होंगे।

“लोग ऐसे एक्सक्लूसिव अनुभवों पर खर्च करने को तैयार हैं। स्पीकईज़ी को ‘सीक्रेट रूम’ भी कहा जाता है। इसके अलावा एक्सपीरियेंशियल स्पेसेज़ भी ट्रेंड कर रहे हैं। साइज़ यहाँ सबसे बड़ा फैक्टर होगा,” उन्होंने कहा।

कोर कॉन्सेप्ट को बयान करता डिज़ाइन

प्रीमियम और लक्ज़री रेस्टोरेंट्स में स्टोरीटेलिंग अब सिर्फ इंटीरियर तक सीमित नहीं है। डिज़ाइन एक होलिस्टिक नैरेटिव का हिस्सा बन चुका है—स्पैशियल प्लानिंग से लेकर फूड प्रेज़ेंटेशन, टेबलवेयर, कटलरी और यहाँ तक कि नैपकिन के चुनाव तक।

चितलवाला के अनुसार, कहानी उस तरीके से सामने आती है, जैसे खाना प्लेट किया जाता है, परोसा जाता है और अनुभव कराया जाता है। यह इमर्सिव अप्रोच सुनिश्चित करती है कि मेहमान सिर्फ कॉन्सेप्ट को देखें नहीं, बल्कि हर टचपॉइंट पर उसे महसूस करें।

कीथ मेनन कहते हैं,

“आज रेस्टोरेंट डिज़ाइन को एक नैरेटिव टूल की तरह इस्तेमाल करते हैं, न कि सिर्फ एस्थेटिक लेयर के रूप में। प्रभावी स्टोरीटेलिंग में संयम और स्पष्टता ज़रूरी है। डिज़ाइन सब कुछ समझाने के बजाय सेंसरी संकेतों और क्यूरेटेड मोमेंट्स के ज़रिये व्याख्या की गुंजाइश छोड़ता है।”

एफ एंड बी के साथ डिज़ाइन का तालमेल

डिज़ाइन और फूड एंड बेवरेज का मेल सिर्फ डिज़ाइनर की ज़िम्मेदारी नहीं है। इसमें ओनर्स, शेफ्स, सर्विस टीम और डिज़ाइनर्स—सभी का करीबी सहयोग ज़रूरी होता है।

चितलवाला के अनुसार, “ओपन किचन, लाइव कुकिंग एक्सपीरियंस, सर्विस की कोरियोग्राफी और टेबल प्लेटिंग—हर डिटेल समग्र अनुभव में योगदान देती है। आज रेस्टोरेंट की सफलता इस बात में है कि डिज़ाइन कितनी सहजता से क्यूलिनरी जर्नी को सपोर्ट और एन्हांस करता है।”

आज बार्स भी रेस्टोरेंट के सेकेंडरी एलिमेंट न रहकर स्वतंत्र एक्सपीरियेंशियल डेस्टिनेशन बन चुके हैं। बदलती लाइफस्टाइल, एक्सपेरिमेंटल कॉकटेल्स और सोशल कल्चर ने बार डिज़ाइन को एनर्जी, इंटरैक्शन और एंगेजमेंट-केंद्रित बना दिया है। चाहे वह बार-लाउंज हो, क्लब हो या स्वतंत्र एफ एंड बी कॉन्सेप्ट—आज बार की अपनी एक अलग पहचान होती है।

कीथ मेनन के अनुसार, “सर्विस काउंटर, टेस्टिंग एरिया और शेफ-लेड इंटरैक्शन स्पैशियल अनुभव का हिस्सा बन जाते हैं। लंबे काउंटर, क्लियर साइटलाइंस, लेयर्ड लाइटिंग और क्यूरेटेड बैकबार—बार को एक स्टेज में बदल देते हैं।”

गेस्ट शिफ्ट्स, कॉकटेल वर्कशॉप्स और लेट-नाइट म्यूज़िक जैसी प्रोग्रामिंग बार को एक डेस्टिनेशन के रूप में और मज़बूत बनाती है।

फ्लेक्सिबल लेआउट्स

फ्लेक्सिबिलिटी खासतौर पर कैज़ुअल और मिड-स्केल रेस्टोरेंट्स में दिखाई देती है, जहाँ लेआउट्स ग्रुप साइज, दिन-रात के बदलाव और अलग-अलग डाइनिंग एक्सपीरियंस के अनुसार ढल सकते हैं। इसके लिए मूवेबल फर्नीचर, एडैप्टेबल लाइटिंग और मॉड्यूलर सीटिंग का इस्तेमाल किया जाता है।

हालाँकि, फाइन-डाइनिंग और लक्ज़री रेस्टोरेंट्स में फ्लेक्सिबिलिटी सीमित और सोच-समझकर रखी जाती है। चितलवाला बताते हैं, “इन स्पेसेज़ में कंट्रोल्ड लाइटिंग, फिक्स्ड लेआउट्स और क्यूरेटेड माहौल होता है, जिसे अक्सर प्राइवेट डाइनिंग रूम्स (PDRs) का सपोर्ट मिलता है।”

अंततः फ्लेक्सिबिलिटी को टार्गेट ऑडियंस, फूड फॉर्मैट और सर्विस स्टाइल के अनुसार डिज़ाइन किया जाता है, ताकि स्पैशियल अनुभव रेस्टोरेंट के कोर कॉन्सेप्ट से जुड़ा रहे।

सरलता और सही प्लानिंग सबसे बेहतर काम करती है। लाइटिंग सीन्स, अकॉस्टिक सॉल्यूशंस और डॉक्युमेंटेड लेआउट कॉन्फ़िगरेशन टीम्स को बिना सर्विस बाधित किए तेज़ी से बदलाव करने में मदद करते हैं। सफल फ्लेक्सिबल स्पेसेज़ वही होते हैं, जहाँ गेस्ट मूवमेंट सहज हो, स्टाफ वर्कफ़्लो एफिशिएंट रहे और अनुभव योजनाबद्ध लगे—न कि तात्कालिक। इन सभी रुझानों से एक बात साफ़ है: 2026 के भारत में रेस्टोरेंट स्पेसेज़ में डिज़ाइन एक केंद्रीय और निर्णायक भूमिका निभाने वाला है।

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