फायरसाइड वेंचर्स और रेडसीर की नई उपभोक्ता रिपोर्ट '2030 में भारतीय उपभोक्ता' भारतीय परिवारों द्वारा अपने बच्चों पर खर्च करने के तरीके में एक उल्लेखनीय बदलाव दर्शाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार शहरी माता-पिता अब हर साल प्रति बच्चे लगभग 5.6 लाख रुपये खर्च करते हैं और 2030 तक यह राशि बढ़कर 7-8 लाख रुपये होने का अनुमान है।
इस 'चिल्ड्रेन बजट' का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा और कौशल निर्माण पर खर्च होता है, जिससे एडटेक इस बदलाव का सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता लाभार्थी बन गया है। जैसे-जैसे परिवार इस बात को लेकर ज्यादा सजग हो रहे हैं कि बच्चे क्या सीखते हैं और कैसे सीखते हैं, एडटेक प्रासंगिकता के एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है। हालांकि यह दौर पहली लहर से बहुत अलग दिख रहा है, जो महामारी के दौरान चरम पर थी।
जितना अधिक बजट, उतनी अधिक अपेक्षा
आजकल परिवार शिक्षा, संचार कौशल, आत्मविश्वास निर्माण, रचनात्मक विकास और गुणवत्तापूर्ण अनुभव का एक समग्र संयोजन चाहते हैं। पेरेंट्स भी इस बात पर अधिक ध्यान देते हैं कि उनके बच्चे ऑनलाइन कैसे और किन चीजों पर समय बिताते हैं।
कोडयंग (Codeyoung) के को-फाउंडर और सीईओ शैलेंद्र धाकड़ ने कहा कि वे इस बदलाव को प्रत्यक्ष रूप से देख रहे हैं। उन्होंने कहा, "आज के पेरेंट्स न केवल शैक्षणिक सहायता और उपलब्धि चाहते हैं, बल्कि समग्र विकास, जैसे सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण कौशल विकास और शारीरिक स्वास्थ्य भी चाहते हैं। अब हम देख रहे हैं कि वे अपने बच्चों के कम उम्र में स्क्रीन पर बिताए जाने वाले फिजूल समय और उसके हानिकारक प्रभावों के प्रति सचेत हैं।" वहीं जो पेरेंट्स ज्यादा खर्च कर सकते हैं, वो सिर्फ विविधता नहीं चाहते बल्कि वो एडवांस लर्निंग, अच्छा स्टडी स्ट्रक्चर, बेहतर शिक्षण पद्धति और स्पष्ट परिणाम चाहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि इससे एडटेक की जरूरतें बदल रही हैं।
EdTech 2.0
भारत में एडटेक की पहली लहर ऑनलाइन ट्यूशन और वीडियो-आधारित तैयारी पर आधारित थी। हालांकि आज एडटेक एक संपूर्ण शिक्षण इकोसिस्टम के रूप में विकसित हो रहा है, जिसे मजबूत डिजाइन, निरंतर प्रतिक्रिया और अच्छे परिणाम प्रदान करने होंगे।
टैगहाइव (Taghive) के फाउंडर और सीईओ पंकज अग्रवाल ने बताया कि अपेक्षाएं मौलिक रूप से बदल गई हैं। वे कहते हैं, "अब एडटेक प्रोडक्ट को एक ऑल राउंड प्रोडक्ट होना चाहिए।" इसी संदर्भ में उन्होंने आगे कहा, "पहले तकनीक बनाना बहुत आसान था, लेकिन अब उपभोक्ता ज्यादा समझदार हो रहे हैं और वे गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की मांग कर रहे हैं। भुगतान करने की इच्छा बढ़ी है, जिसका अर्थ है कि अगर उत्पाद की गुणवत्ता अच्छी होगी तो ग्राहक ज्यादा भुगतान करेगा।" इस बदलाव का अर्थ यह है कि एडटेक अब ट्यूशन के लिए एक सुलभ विकल्प पर निर्भर नहीं रह सकता।
इस नई अपेक्षा के केंद्र में निजीकरण की मांग शामिल है। अग्रवाल इसे शिक्षा का अंतिम लक्ष्य कहते हैं। एआई और डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि के साथ प्लेटफॉर्म अब यह समझ सकते हैं कि प्रत्येक बच्चा कैसे सीखता है, वास्तविक समय में प्रगति को ट्रैक कर सकते हैं और अनुकूल शिक्षण पद्धति बना सकते हैं। वे बताते हैं "शिक्षा प्रदान करने में निजीकरण एक अच्छा विकल्प है।"
हालिया रिपोर्ट्स यह भी दर्शाती हैं कि एडटेक सेक्टर धीरे-धीरे फिर से मजबूत हो रहा है। उदाहरण के लिए फिजिक्सवाला का आगामी आईपीओ (IPO) संकेत देता है कि ऑनलाइन शिक्षा, खासकर परीक्षा की तैयारी की मांग स्थिर बनी हुई है। इसी तरह अपग्रेड-अनएकेडमी की रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह एडटेक उद्योग एक अधिक स्थिर और इंटीग्रेटेड फेस में प्रवेश कर रहा है।
आईएमएआरसी समूह के विश्लेषण के अनुसार भारतीय एडटेक बाजार का मूल्य 2024 में 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और 2033 तक इसके 33.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है, जो 2025 और 2033 के बीच 28.7% की अनुमानित चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) को दर्शाता है
टियर 2 और टियर 3 भारत: विकास की नई शुरूआत
एडटेक के अगले चरण का एक प्रमुख कारक टियर 2 और टियर 3 शहरों में इसकी बढ़ती स्वीकार्यता है। बढ़ती डिस्पोजेबल आय, बेहतर कनेक्टिविटी और बढ़ती आकांक्षाओं ने इन बाजारों को उच्च-उद्देश्य वाले क्षेत्रों में बदल दिया है। अग्रवाल ने आगे कहा, "टियर 2 और टियर 3 शहरों में एडटेक की पेशकश उतनी लोकप्रिय नहीं रही है, लेकिन अब कंपनियां इन क्षेत्रों को विकास के नए क्षेत्रों के रूप में देख रही हैं।"
धाकड़ ने भी इस बदलाव को दोहराया "हमें उत्तर भारत के टियर 2 शहरों, जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान, से जबरदस्त मांग देखने को मिल रही है, जिन माता-पिता के पास खर्च करने लायक आय है, वे अपने बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण उपकरणों और संसाधनों में निवेश करना चाहते हैं।" वहीं उद्योग जगत के बुद्धिजीवियों का सुझाव है कि स्थानीय मूल्य निर्धारण, किश्तों में भुगतान और क्षेत्रीय सामग्री भी इन बाजारों पर कब्जा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। समय के साथ ये शहर एडटेक कंपनियों के लिए बेहद कॉम्पिटेटिव क्षेत्र बन गए हैं।
AI पर्सनलाइजेशन और एडटेक का भविष्य
एडटेक का अगला दशक पर्सनलाइजेशन, बेहतर शिक्षण पद्धति और आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस (AI) के मेल से क्षेत्र-विस्तार करेगा। वहीं फाउंडर अब AI को शिक्षकों के विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि एक सहायक प्रणाली के रूप में देख रहे हैं जो कमियों का पता लगाने, गति को समायोजित करने और विभिन्न क्षमताओं वाली कक्षाओं में विभिन्न प्रकार के शिक्षण को सक्षम बनाने में मदद करती है।
समग्र शिक्षा (Holistic Education) भी पेरेंट्स की सबसे बड़ी एक्सपेक्टेशन में से एक बनकर उभर रही है। माता-पिता सार्थक जुड़ाव, संरचित अनुभव और स्पष्ट विकासात्मक मूल्य चाहते हैं, न कि फिजूल स्क्रीन समय। अतः इसने संचार, रचनात्मकता, भावनात्मक बुद्धिमत्ता, खेल-तकनीक और व्यावहारिक STEM शिक्षा जैसी नई श्रेणियों को जन्म दिया है।
ब्रांड इस गहरी और व्यापक मांग को पूरा करने के लिए अपने कार्यक्रमों को नया स्वरूप देकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। भारत में एडटेक अपने अब तक के सबसे ठोस और परिपक्व चरण में प्रवेश कर रहा है। बढ़ते घरेलू बजट, स्पष्ट अपेक्षाओं, टियर 2-3 के मजबूत अपनाने और एआई-संचालित वैयक्तिकरण की ओर बढ़ते रुझान के साथ यह क्षेत्र बच्चों के सीखने के इकोसिस्टम का एक प्रमुख हिस्सा बनता जा रहा है।